Difference between revisions of "भीम और राक्षस(एकांकी)"
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Revision as of 16:38, 5 May 2016
परिकल्पना नक्षा
पृष्ठभूमि/संधर्भ
बकासुर एक दानव जो की महाभारत युद्ध का एक चरित्र था। बकासुर दैत्य का वध पांडू पुत्र भीम ने किया था। महापुरूष का कहना है कि एकचक्र के शहर में एक छोटा सा गांव, उत्तर प्रदेश के जिले प्रतापगढ़ शहर के दक्षिण में स्थित द्वैतवन में रहता था वर्तमान में चक्रनगरी को चकवड़ के नाम से जाना जाता है। बकासुर मुख्यतः तीन स्थान में रहता था जो द्वैतवन के अंतर्गत आता था। पहला चक्रनगरी, दूसरा बकागढ़, बकासुर इस क्षेत्र में रहता था इस लिए इस स्थान का नाम बकागढ़ पड़ा था किन्तु वर्तमान में यह स्थान बकाजलालपुर के नाम से जाना जाता है जो की इलाहाबाद जिले के अंतर्गत आता है। तीसरा और अंतिम स्थान जंहा राक्षस बकासुर रहता था वह था डीहनगर, जिला प्रतापगढ़ के दक्षिण और इलाहाबाद जिला ले उत्तर में बकुलाही नदी के तट पर बसा है। इस स्थान को वर्तमान में ऊचडीह धाम के नाम से जाना जाता है। लोकमान्यता है की इसी जगह राक्षस बकासुर का वध भीम ने अज्ञातवास के दौरान किया था।
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मुख्य उद्देष्य
लेखक से परिचय
विष्णु प्रभाकर (२१ जून १९१२- ११ अप्रैल २००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक थे जिन्होने अनेकों लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक तथा यात्रा संस्मरण लिखे। उनकी कृतियों में देशप्रेम, राष्ट्रवाद, तथा सामाजिक विकास मुख्य भाव हैं।विष्णु प्रभाकर का जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था। उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपये मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।
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अतिरिक्त संसाधन
सारांश
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परिकल्पना
शिक्षक के नोट
गतिविधि
- विधान्/प्रक्रिया
- समय
- सामग्री / संसाधन
- कार्यविधि
- चर्चा सवाल