हिन्दी: व्याकरण
कि और की का प्रयोग
‘कि’ का प्रयोग
1. ‘कि’ एक संयोजक (जोड़ने वाला) शब्द है जो मुख्य वाक्य को आश्रित वाक्य के साथ जोड़ने का कार्य करता है।
2. यह पहले वाक्य के अंत में और दूसरे वाक्य के प्रारंभ में लगता है।
जैसे - शिक्षक ने कहा कि एक कविता सुनाओ।
3. ‘कि’ का प्रयोग विभाजन के लिए ‘या’ के स्थान पर भी होता है।
जैसे - तुम डाक-टिकिट संग्रह करते हो कि सिक्के।
4. ‘कि’ का प्रयोग क्रिया के बाद ही होता है। जैसे ऊपर दिए गए उदाहरणों में क्रिया ‘कहा’ और ‘करते हो’ के बाद है।
‘की’ का प्रयोग
1. संज्ञा या सर्वनाम शब्द के बाद आने वाले अन्य संज्ञा शब्द के बीच ‘की’ का प्रयोग होता है। यह दोनों शब्दों को जोड़ने और उनके बीच सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य करता है।
(अ) ताले की चाबी खो गई ।
(यहाँ 'ताले' और 'चाबी' दोनों संज्ञा शब्द हैं।)
(ब) उसकी किताब मेज पर रखी है।
(यहाँ 'उस' सर्वनाम और 'मेज' संज्ञा शब्द है जिसे ‘की’ द्वारा जोड़ा गया है।)
2. ‘की’ के बाद स्त्रीलिंग शब्द आता है। ऊपर दिए गए उदाहरणों में चाबी और किताब दोनों स्त्रीलिंग शब्द है।
याद रखने की बात:-
क्रिया के बाद ‘कि’ लिखा जाता है ‘की’ नहीं ।
‘की’ के बाद स्त्रीलिंग शब्द का प्रयोग होता है।
सन्धि
दो ध्वनियों (वर्णों) के परस्पर मेल को सन्धि कहते हैं।
अर्थात् जब दो शब्द मिलते हैं तो प्रथम शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण)तथा मिलने वाले शब्द की प्रथम ध्वनि के मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते हैं।
ध्वनियों के मेल में स्वर के साथ स्वर (राम+अवतार), स्वर के साथ व्यंजन (आ+छादन), व्यंजन के साथ व्यंजन (जगत्+नाथ), व्यंजन के साथ स्वर (जगत्+ईश),विसर्ग के साथ स्वर (मनःअनुकूल) तथा विसर्ग के सा
प्रकार: सन्धि तीन प्रकार की होती है
- स्वर सन्धि
- व्यंजन सन्धि
- विसर्ग सन्धि
स्वर सन्धि
स्वर के साथ स्वर के मेल को स्वर सन्धि कहते हैं। हिन्दी में स्वर ग्यारह होते हैं। यथा-अ,आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ तथा व्यंजन प्रायः स्वर की सहायता से बोले जाते हैं।
जैसे ‘राम’ में ‘म’ में ‘अ’ स्वर निहित है। ‘राम+अवतार- में ‘म- का ‘अ- तथा अवतार के ‘अ’ स्वर का मिलन होकर सन्धि होगी।
स्वर सन्धि पाँच प्रकार की होती है
- दीर्घ सन्धि
- गुण सन्धि
- वृद्धि सन्धि
- यण सन्धि
- अयादि सन्धि
दीर्घ सन्धि
अ, इ, उ, लघु या ह्रस्व स्वर हैं और आ, ई, ऊ गुरु या दीर्घ स्वर। अतः
अ या आ के साथ अ या आ के मेल से ‘आ’; ‘इ’ या ‘ई’ के साथ ‘इ’ या ई के मेल से ‘ई’
तथा उ या ऊ के साथ उ या ऊ के मेल से ‘ऊ’ बनता है। जैसे:
अ+अ – आ
नयन + अभिराम = नयनाभिराम
चरण + अमृत = चरणामृत
परम + अर्थ = परमार्थ
स + अवधान = सावधान
विच्छेद
रामानुज = राम + अनुज गीतांजलि = गीत + अंजलि
सूर्यास्त = सूर्य + अस्त मुरारि = मुर + अरि
अ + आ = आ
देव + आलय = देवालय सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
रत्न + आकर = रत्नाकर कुश + आसन = कुशासन
विच्छेद
छात्रावास = छात्र + आवास देवानन्द = देव + आनन्द
दीपाधार = दीप + आधार प्रारम्भ = प्र + आरम्भ
आ + अ = आ
सेना + अध्यक्ष = सेनाध्यक्ष विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
तथा + अपि = तथापि युवा + अवस्था= युवावस्था
विच्छेद
कक्षाध्यापक = कक्षा + अध्यापक श्रद्धांजलि = श्रद्धा +अंजलि
सभाध्यक्ष = सभा + अध्यक्ष द्वारकाधीश = द्वारका + अधीश
आ + आ = आ
विद्या + आलय = विद्यालय महा + आशय = महाशय
प्रतीक्षा+आलय = प्रतीक्षालय श्रद्धा + आलु = श्रद्धालु
विच्छेद
चिकित्सालय = चिकित्सा + आलय
कृपाकांक्षी = कृपा + आकांक्षी
मायाचरण = माया + आचरण
दयानन्द = दया + आनन्द
इ + इ = ई
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र अभि + इष्ट = अभीष्ट
विच्छेद
गिरीन्द्र = गिरि + इन्द्र अधीन = अधि + इन
इ + ई = ई
हरि + ईश = हरीश परि + ईक्षा = परीक्षा
विच्छेद
अभीप्सा = अभि + ईप्सा अधीक्षक = अधि + ईक्षक
ई + इ = ई
मही + इन्द्र = महीन्द्र लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा
विच्छेद
फणीन्द्र = फणी + इन्द्र श्रीन्दु = श्री + इन्दु
ई + ई = ई
नारी + ईश्वर = नारीश्वर जानकी + ईश = जानकीश
विच्छेद
रजनीश = रजनी + ईश नदीश = नदी + ईश
उ + उ = ऊ
भानु + उदय = भानूदय गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
विच्छेद
लघूत्तर = लघु + उत्तर कटूक्ति = कटु + उक्ति
ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊध्र्व = भूध्र्व
भू + ऊष्मा = भूष्मा
विच्छेद
चमूर्जा = चमू + ऊर्जा
सरयूर्मि = सरयू + ऊर्मि
गुण सन्धि
अ या आ के साथ इ या ई के मेल से ‘ए’ ( Ú ), अ या आ के साथ उ या ऊ के मेल से ‘ओ’ ( ो ) तथा अ या आ के साथ ऋ के मेल से ‘अर’बनता है यथा
अ + इ = ए
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
स्व + इच्छा = स्वेच्छा
विच्छेद
नेति = न + इति
भारतेन्दु = भारत + इन्दु
अ + ई = ए
नर + ईश = नरेश
सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
विच्छेद
गणेश = गण + ईश
प्रेक्षा = प्र + ईक्षा
आ + इ = ए
महा + इन्द्र = महेन्द्र
यथा +इच्छा = यथेच्छा
विच्छेद
राजेन्द्र = राजा + इन्द्र
यथेष्ट = यथा + इष्ट
आ + ई = ए
राका + ईश = राकेश
द्वारका +ईश = द्वारकेश
विच्छेद
रमेश = रमा + ईश
मिथिलेश = मिथिला + ईश
अ + उ = ओ ओ
पर+उपकार = परोपकार
सूर्य + उदय = सूर्योदय
विच्छेद
प्रोज्ज्वल = प्र + उज्ज्वल
सोदाहरण = स + उदाहरण
अन्त्योदय = अन्त्य + उदय
अ + ऊ = ओ
ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
विच्छेद
समुद्रोर्मि = समुद्र + ऊर्मि
जलोर्जा = जल + ऊर्जा
आ + उ = ओ ओ
महा + उदय = महोदय
यथा+उचित = यथोचित
विच्छेद
शारदोपासक = शारदा + उपासक
महोत्सव = महा + उत्सव
आ + ऊ = ओ ओ
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
महा + ऊर्जा = महोर्जा
विच्छेद
यमुनोर्मि = यमुना + ऊर्मि
महोरू = महा + ऊरू
अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि
शीत + ऋतु = शीतर्तु
विच्छेद
सप्तर्षि = सप्त + ऋषि
उत्तमर्ण = उत्तम + ऋण
आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि
विच्छेद
राजर्षि = राजा + ऋषि
( पपप) वृद्धि सन्धि: अ या आ के साथ ‘ए’ या ‘ऐ’ के मेल से ‘ऐ’ ( ै ) तथा अ या
आ के साथ ‘ओ’ या ‘औ’ के मेल से ‘औ’ ( ौ ) बनता है। यथा:
अ + ए = ऐ
मत + एकता = मतैकता
धन + एषणा = धनैषणा
विच्छेद
एकैक = एक + एक
विश्वैकता = विश्व + एकता
अ + ऐ = ऐ
ज्ञान+ऐश्वर्य = ज्ञानैश्वर्य
स्व+ऐच्छिक = स्वैच्छिक
विच्छेद
मतैक्य = मत + ऐक्य
देवैश्वर्य = देव + ऐश्वर्य
आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव
वसुधा + एव = वसुधैव
विच्छेद
महैषणा = महा+एषणा
तथैव = तथा + एव
आ + ऐ = ऐ
महा+ऐश्वर्य = महैश्वर्य
विच्छेद
गंगैश्वर्य = गंगा + ऐश्वर्य
अ + ओ = औ
दूध + ओदन = दूधौदन
जल + ओघ = जलौघ
विच्छेद
परमौज = परम + ओज
घृतौदन = घृत + ओदन
अ + औ = औ
वन+औषध = वनौषध
तप+औदार्य = तपौदार्य
विच्छेद
भावौचित्य = भाव + औचित्य
भावौदार्य = भाव + औदार्य
आ + ओ = औ
महा + ओज = महौज
गंगा + ओघ = गंगौघ
विच्छेद
महौजस्वी = महा + ओजस्वी
आ + औ = औ
महा+औषध = महौषध
यथा+औचित्य = यथौचित्य
विच्छेद
महौत्सुक्य = महा + औत्सुक्य
महौदार्य = महा + औदार्य
यण सन्धि
इ या ई के साथ इनके अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर इ या ई के स्थान पर ‘य्’ उ या ऊ के साथ इनके अतिरिक्त अन्य स्वर के मेल पर उ या ऊ के स्थान पर ‘व्’ तथा‘ऋ’
के साथ अन्य किसी स्वर
के मेल पर ‘र्’ बन
जायेगा तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा य्, व्, ‘र्’ में लग जायेगी। यथा
अति + अधिक = अत्यधिक
सु + आगत = स्वागत
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
इसमें विच्छेद करते समय य, व तथा ‘र’ के पूर्व आये हलन्त वर्ण में क्रमशः
इ, ई;
उ ऊ
तथा ऋ की मात्रा लगा देंगे तथा य, व, र में जो स्वर है उस स्वर
के प्रारम्भ से पिछला शब्द
लिख देंगे यथा
अत्याचार = अति + आचार
अन्वीक्षण = अनु + ईक्षण
मात्रनुमति = मातृ + अनुमति
अभ्यासार्थ अन्य उदाहरण देखिए-
इ + अ = य
अति + अल्प = अत्यल्प
अधि + अक्ष = अध्यक्ष
विच्छेद
गत्यवरोध = गति + अवरोध
व्यवहार = वि + अवहार
यद्यपि = यदि + अपि
इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि
परि + आवरण = पर्यावरण
विच्छेद
अभ्यागत = अभि + आगत
व्यायाम = वि + आयाम
पर्याप्त = परि + आप्त
इ + उ = यु
अभि + उदय = अभ्युदय
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
विच्छेद
रव्युदय = रवि + उदय
उपर्युक्त = उपरि + उक्त
इ + ऊ = यू
नि + ऊन = न्यून
अधि + ऊढ़ा = अध्यूढ़ा
विच्छेद
अध्येय = अधि + एय
जात्येकता = जाति + एकता
ई + अ = य
नदी + अर्पण = नद्यर्पण
मही + अर्चन = मह्यर्चन
विच्छेद
नद्यन्त = नदी + अन्त
देव्यर्पण = देवी + अर्पण
ई + आ = या
मही + आधार = मह्याधार
विच्छेद
देव्यागमन = देवी + आगमन
नद्यामुख = नदी + आमुख
ई + उ = यु
वाणी + उचित = वाण्युचित
नदी + उत्पन्न = नद्युत्पन्न
विच्छेद
देव्युपासना = देवी + उपासना
वाण्युपयोगी = वाणी + उपयोगी
उ + अ = व
अनु + अय = अन्वय
मधु + अरि = मध्वरि
विच्छेद
तन्वंगी = तनु + अंगी
स्वल्प = सु + अल्प
उ + आ = वा
गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा
भानु + आगमन = भान्वागमन
उ + ई = वी
अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण
विच्छेद
अन्वीक्षा = अनु + ईक्षा
उ + ए = वे
अनु + एषण = अन्वेषण
विच्छेद
अन्वेषी = अनु + एषी
ऊ + आ = वा
वधू + आगमन = वध्वागमन
विच्छेद
भ्वादि = भू + आदि
ऋ + अ = र
मातृ + अनुमति = मात्रनुमति
ऋ + आ = रा
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
ऋ + इ = रि
मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
ऋ + उ = रु
पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश
नोट: त् + र के मेल से ‘त्र’ बनता है।
अयादि सन्धि
ए, ऐ, ओ, औ के साथ अन्य किसी स्वर के मेल पर ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’; ‘ऐ’ के स्थान
पर ‘आय्’; ओ के स्थान पर ‘अव्’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आव्’ बन जाता है तथा मिलने वाले
स्वर की मात्रा य् तथा ‘व्’ में लग जाती है। जैसे –
ने + अन = नयन, गै + अक = गायक
पो + अन = पवन, पौ + अक = पावक
सन्धि विच्छेद करते समय ध्यान रखना है कि यदि ‘य’ के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर
हो तो उसमें ‘ए’ की मात्रा, आ का स्वर हो तो ‘ऐ’ की मात्रा तथा ‘व’ के पहले वाले वर्ण में
‘अ’ का स्वर हो तो ‘ओ’ की मात्रा तथा ‘आ’ का स्वर हो तो ‘औ’ की मात्रा लगा दें तथा ‘य’
एवं व में जो स्वर है, उससे अगला शब्द बनालें। यथा –
विलय = विले + अ, विनायक = विनै + अक
पवित्र = पो + इत्र, भावुक = भौ + उक
ए + अ = अय
विने + अ = विनय
चे + अन = चयन
ऐ + अ = आय
नै + अक = नायक
विधै + इका= विधायिका
गै + इका = गायिका
ओ + अ = अव भो + अन = भवन
ओ + इ = अवि हो + इष्य = हविष्य
ओ + ए = अवे गो + एषणा = गवेषणा
औ + अ = आव पौ + अन = पावन
औ + इ = आवि नौ + इक = नाविक
औ + उ = आवु भौ + उक = भावुक
व्यंजन सन्धि
व्यंजन सन्धि में व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन का मेल तथा स्वर के साथ व्यंजन का मेल होता है।
जैसे दिक् + अम्बर=दिगम्बर, सत्+जन=सज्जन, अभि+सेक = अभिषेक।
व्यंजन सन्धि के कतिपय नियम
1. क्, च्, ट्, त्, प्, के साथ किसी भी स्वर तथा किसी भी वर्ग के तीसरे व चैथे वर्ण
(ग, घ, ज, झ, ड, ढ़, द, ध, ब, भ) तथा य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर ‘क्’ के स्थान पर ग्, च् के स्थान पर ज्, ट् के स्थान पर ड्,
त् के स्थान पर द् तथा प् के स्थान
पर ब् बन जायेगा तथा यदि स्वर मिलता है तो स्वर की मात्रा
हलन्त वर्ण में लग जायेगी किन्तु
व्यंजन के मेल पर वे हलन्त ही रहेंगे। यथा –
क् के स्थान पर ग्
दिक् + अम्बर = दिगम्बर
वाक् + ईश = वागीश
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
वणिक् + वर्ग = वणिग्वर्ग
विच्छेद
प्रागैतिहासिक = प्राक् + ऐतिहासिक
दिग्विजय = दिक् + विजय
च् के स्थान पर ज् = अच् + अन्त = अजन्त
विच्छेद
अजादि = अच् + आदि
ट् के स्थान पर ड्
के षट् + आनन = षडानन
षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
विच्छेद
षड्दर्शन = षट् + दर्शन
षड्विकार = षट् + विकार
षडंग = षट् + अंग
त् का द्
सत् + आचार = सदाचार
उत् + यान = उद्यान
तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
विच्छेद
सदाशय = सत् + आशय
तदनन्तर = तत् + अनन्तर
उद्घाटन = उत् + घाटन
जगदम्बा = जगत् + अम्बा
प् का ब्
अप् + द = अब्द
विच्छेद
अब्ज = अप् + ज
2.क्, च्, ट्, त्, प् के साथ किसी भी नासिक वर्ण (ङ,ञ, ज, ण, न, म) के मेल पर क् के स्थान पर ङ्, च् के स्थान पर ज्, ट् के स्थान पर ण्,त् के स्थान पर न् तथा प्
के स्थान पर म् बन जायेंगे। यथा
क् का ङ्
वाक् + मय = वाङ्मय
दिक् + नाग = दिङ्नाग
विच्छेद
दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
प्राङ्मुख = प्राक् + मुख
ट् का ण्
षट् + मास = षण्मास
षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
विच्छेद
षण्मुख = षट् + मुख
षाण्मासिक = षट् + मासिक
त् का न्
उत् + नति = उन्नति
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
उत् + मूलन = उन्मूलन
विच्छेद
जगन्माता = जगत् + माता
उन्नायक = उत् + नायक
विद्वन्मण्डली = विद्वत् + मण्डली
प् का म्
अप् + मय = अम्मय
3.म् के साथ क से म तक के किसी भी
वर्ण के मेल पर ‘म्’ के
स्थान पर मिलने
वाले वर्ण का अन्तिम नासिक वर्ण बन जायेगा। आजकल नासिक
वर्ण के स्थान पर अनुस्वार (-) भी मान्य हो गया है। यथा
म् + क ख ग घ ङ
सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
सम् + ख्या = संख्या
सम् + गम = संगम
सम् + घर्ष = संघर्ष
विच्छेद
अलंकार = अलम् + कार
शंकर = शम् + कर
संगठन = सम् + गठन
अपवाद
सम् + करण = संस्करण
सम् + कृत = संस्कृत
सम् + कार = संस्कार
सम् + कृति = संस्कृति
म् + च, छ, ज, झ, ञ
सम् + चय = संचय
किम् + चित् = किंचित
सम् + जीवन = संजीवन
विच्छेद
किंचन = किम् + चन
मृत्युंजय = मृत्युम् + जय
संचालन = सम् + चालन
म् + ट, ठ, ड, ढ, ण
दम् + ड = दण्ड/दंड
खम् + ड = खण्ड/खंड
म् + त, थ, द, ध, न
सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
किम् + नर = किन्नर
सम् + देह = सन्देह
विच्छेद
सन्ताप/संताप = सम् + ताप
धुरन्धर = धुरम् + धर
म् + प, फ, ब, भ, म
सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
सम् + भव = सम्भव/संभव
विच्छेद
विश्वम्भर = विश्वम् + भर
सम्भावना = सम् + भावना
4.म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण के
मेल पर ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार ही लगेगा।
सम् + योग = संयोग
सम् + रचना = संरचना
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + वत् = संवत्
सम् + शय = संशय
सम् + हार = संहार
विच्छेद
संयोजना = सम् + योजना
संविधान = सम् + विधान
संसर्ग = सम् + सर्ग
संश्लेषण = सम् + श्लेषण
5. त् या द् के साथ च या छ के मेल पर
त् या द् के स्थान पर च् बन जायेगा।
उत् + चारण = उच्चारण
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
उत् + छिन्न = उच्छिन्न
विच्छेद
वृहच्चयन = वृहत् + चयन
उच्छेद = उत् + छेद
विद्युच्छटा = विद्युत् + छटा
6. त् या द् के साथ ज या झ के मेल पर त् या द् के स्थान पर ज् बन जायेगा
–
सत् + जन = सज्जन
जगत् + जीवन = जगज्जीवन
वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
विच्छेद
उज्ज्वल = उत् + ज्वल
यावज्जीवन = यावत् + जीवन
महज्झंकार = महत् + झंकार
7. त् या द् के साथ ट या ठ के मेल पर त् या द् के स्थान पर ट् बन जायेगा ।
तत् + टीका = तट्टीका
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
(अपपप) त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ के मेल पर त् या द् के स्थान
पर ‘ड्’
बन जायेगा
उत् + डयन = उड्डयन
भवत् + डमरू = भवड्डमरू
8. त् या द् के साथ ल के मेल पर त् या द् के स्थान पर ‘ल्’ बन जायेगा।
उत् + लास = उल्लास
तत् + लीन = तल्लीन
विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
विच्छेद
उल्लंघन = उत् + लंघन
भगवल्लीन = भगवत् + लीन
उल्लेख = उत् + लेख
9. त् या द् के साथ ‘ह’ के मेल पर त् या द् के स्थान पर द् तथा ह के स्थान पर
ध बन जाता है जैसे
उत् + हार = उद्धार/उद्धार
उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत
पद् + हति = पद्धति
विच्छेद
तद्धित = तत् + हित
उद्धरण = उत् + हरण
10. ‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मेल पर त् या द् के स्थान पर ‘च्’ तथा ‘श’ के स्थान पर ‘छ’ बन जाता है
उत् + श्वास = उच्छ्वास
उत् + शृंखल = उच्छृंखल
शरत् + शशि = शरच्छशि
विच्छेद
उच्छिष्ट = उत् + शिष्ट
सच्छास्त्र = सत् + शास्त्र
11. किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मेल पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ का आगमन हो जाता है
आ + छादन = आच्छादन
अनु + छेद = अनुच्छेद
शाला + छादन = शालाच्छादन
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
विच्छेद
परिच्छेद = परि + छेद
विच्छेद = वि + छेद
तरुच्छाया = तरु + छाया
एकच्छत्र = एक + छत्र
12. अ या आ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के साथ ‘स’ के मेल पर ‘स’ के स्थान पर ‘ष’ बन जायेगा।
वि + सम = विषम
अभि + सिक्त = अभिषिक्त
अनु + संग = अनुषंग
विच्छेद
अभिषेक = अभि + सेक
सुषुप्त = सु + सुप्त
निषेध = नि + सेध
विषाद = वि + साद
अपवाद
वि + सर्ग = विसर्ग
अनु + सार = अनुसार
वि + सर्जन = विसर्जन
वि + स्मरण = विस्मरण
13. यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर,
क, ख ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जायेगा।
राम + अयन = रामायण
परि + नाम = परिणाम
नार + अयन = नारायण
विच्छेद
प्रसारण = प्रसार + न
उत्तरायण = उत्तर + अयन
मृण्मय = मृत् + मय
क्रीड़ांगण = क्रीड़ा + अंगन
(गअ) द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह के मेल पर द् के स्थान पर त् बन जाता है
संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
तद् + पर = तत्पर
सद् + कार = सत्कार
विसर्ग सन्धि
विसर्ग (ः) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल पर विसर्ग सन्धि होती है। यथा
निः + अक्षर = निरक्षर
दुः + आत्मा = दुरात्मा
निः + पाप = निष्पाप
1. विसर्ग के साथ च या छ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘श्’ बन जाता है
निः + चय = निश्चय
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
निः + छल = निश्छल
विच्छेद
तपश्चर्या = तपः + चर्या
अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र
अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु
2.विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’बन जाता है।
दुः + शासन = दुश्शासन
यशः + शरीर = यशश्शरीर
निः + शुल्क = निश्शुल्क
विच्छेद
निश्श्वास = निः + श्वास
चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी
निश्शंक = निः + शंक
3. विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
चतुः + टीका = चतुष्टीका
चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
4. यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा
विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क,
ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग
के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।
निः + कलंक = निष्कलंक
दुः + कर = दुष्कर
आविः + कार = आविष्कार
चतुः + पथ = चतुष्पथ
निः + फल = निष्फल
विच्छेद
निष्काम = निः + काम
निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन
बहिष्कार = बहिः + कार
निष्कपट = निः + कपट
ज्योतिष्कण = ज्योतिः + कण
5. यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में
अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क,ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा यथा
अधः + पतन = अध: पतन
प्रातः + काल = प्रात: काल
अन्त: + पुर = अन्त: पुर
वय: क्रम = वय: क्रम
विच्छेद
रज: कण = रज: + कण
तप: पूत = तप: + पूत
पय: पान = पय: + पान
अन्त: करण = अन्त: + करण
अपवाद
भा: + कर = भास्कर
नम: + कार = नमस्कार
पुर: + कार = पुरस्कार
श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
बृह: + पति = बृहस्पति
पुर: + कृत = पुरस्कृत
तिर: + कार = तिरस्कार
6. विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।
अन्त: + तल = अन्तस्तल
नि: + ताप = निस्ताप
दु: + तर = दुस्तर
नि: + तारण = निस्तारण
विच्छेद
निस्तेज = निः + तेज
नमस्ते = नम: + ते
मनस्ताप = मन: + ताप
बहिस्थल = बहि: + थल
7. विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।
नि: + सन्देह = निस्सन्देह
दु: + साहस = दुस्साहस
नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न
विच्छेद
निस्संतान = नि: + संतान
दुस्साध्य = दु: + साध्य
मनस्संताप = मन: + संताप
पुनस्स्मरण = पुन: + स्मरण
8. यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’
की हो जायेगी।
नि: + रस = नीरस
नि: + रव = नीरव
नि: + रोग = नीरोग
दु: + राज = दूराज
विच्छेद
नीरज = नि: + रज
नीरन्द्र = नि: + रन्द्र
चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
दूरम्य = दु: + रम्य
9. विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त
अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा
अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।
अत: + एव = अतएव
मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
पय: + आदि = पयआदि
तत: + एव = ततएव
10. विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰,
´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर
विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।
मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
सर: + ज = सरोज
वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
यश: + धरा = यशोधरा
मन: + योग = मनोयोग
अध: + भाग = अधोभाग
तप: + बल = तपोबल
मन: + रंजन = मनोरंजन
विच्छेद
मनोनुकूल = मन: + अनुकूल
मनोहर = मन: + हर
तपोभूमि = तप: + भूमि
पुरोहित = पुर: + हित
यशोदा = यश: + दा
अधोवस्त्र = अध: + वस्त्र
अपवाद
पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
अन्त: + यामी = अन्तर्यामी
समास
परिभाषा : 'समास' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है 'छोटा रूप'। अतः जब दो या दो से अधिक शब्द (पद) अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर जो छोटा रूप बनाते है, उसे समास, सामाजिक शब्द या समस्त पद कहते है।
जैस : 'रसोई के लिए घर' शब्दों में से 'के लिए' विभक्त का लोप करने पर नया शब्द बना 'रसोई घर', जो एक सामासिक शब्द है।
किसी समस्त पद या सामासिक शब्द को उसके विभिन्न पदों एवं विभक्ति सहित पृथक् करने की क्रिया को समास का विग्रह कहते है।
जैसे : विद्यालय = विद्या के लिए आलय, माता पिता = माता और पिता
समास के प्रकार :
'समास छः प्रकार के होते है-'
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. द्वन्द्व समास
4. बहुब्रीहि समास
5. द्विगु समास
6. कर्म धारय समास
==अव्ययीभाव समास==
1. पहला पद प्रधान होता है।
2. पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है। (वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नही बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं)
3. यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययीभाव समास होता है।
4. संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास होते है।
यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
यथाक्रम = क्रम में अनुसार
यथावसर = अवसर के अनुसार
यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो
यथाविधि = विधि के अनुसार
यथेच्छा = इच्छा के अनुसार
प्रतिदिन = प्रत्येक दिन, दिन-दिन, हर दिन
प्रत्येक = हर एक, एक-एक, प्रति एक
प्रत्यक्ष = अक्षि के आगे
रातों-रात = रात ही रात में
बीचों-बीच = ठीक बिच में
आमरण = मरने तक, मरणपर्यंत
आसमुद्र = समुद्रपर्यन्त
भरपेट = पेट भरकर
अनुकूल = जैसा कूल है वैसा
यावज्जीवन = जीवन पर्यन्त
निर्विवाद = बिना विवाद के
दरअसल = असल में
बाकायदा = कायदे के अनुसार
साफ-साफ = साफ के बाद साफ, बिलकुल साफ
घर-घर = प्रत्येक घर, हर घर, किसी भी घर को न छोड़कर
हाथों-हाथ = एक हाथ से दूसरे हाथ तक, हाथ ही हाथ में
तत्पुरुष समास
1. तत्पुरुष समास में दूसरा पद (पर पद) प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का लिंग, वचन दूसरे पद के अनुसार होता है।
2. इसका विग्रह करने पर कर्ता व सम्बोधन की विभक्तियों(ने,हे,ओ,अरे) के अतिरिक्त किसी भी कारक की विभक्त प्रयुक्त होती है तथा विभक्तियों के अनुसार ही इसके उपभेद होते है। जैसे-
(क). कर्म तत्पुरुष (को) :
कृष्णार्पण = कृष्ण को अर्पण
वन-गमन = वन को गमन
प्राप्तोदक = उदक को प्राप्त
नेत्र सुखद = नेत्रों को सुखद
जेब करता = जेब को कतरने वाला
(ख). करण तत्पुरुष (से/के द्वारा) :
ईश्वर-प्रदत्त = ईश्वर से प्रदत्त
तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित
रत्न जड़ित = रत्नों से जड़ित
हस्त-लिखित = हस्त (हाथ) से लिखित
दयार्द्र = दया से आर्द्र
(ग). सम्प्रदान तत्पुरुष (के लिए) :
हवन-सामग्री = हवन के लिए सामग्री
गुरु-दक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
विद्यालय = विद्या के लिए आलय
बलि पशु = बलि के लिए पशु
(घ). अपादान तत्पुरुष (से पृथक्) :
ऋण-मुक्त = ऋण से मुक्त
मार्ग भ्रष्ट = मार्ग से भ्रष्ट
देश-निकला = देश से निकला
पदच्युत = पद से च्युत
धर्म-विमुख = धर्म से विमुख
(च). सम्बन्ध तत्पुरुष (का, के , की) :
मंत्रि-परिषद् = मंत्रियों की परिषद्
प्रेम-सागर = प्रेम का सागर
राजमाता = राजा की माता
अमचूर = आम का चूर्ण
रामचरित = राम का चरित
(छ). अधिकरण तत्पुरुष (में, पे, पर) :
वनवास = वन में वास
ध्यान-मग्न = ध्यान में मग्न
घृतान्न = घी में पका अन्न
जीवदया = जीवों पर दया
घुड़सवार = घोड़े पर सवार
कवि पुंगव = कवियों में श्रेष्ठ
द्वन्द्व समास
1. द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते है।
2. दोनों पद प्रायः एक दूसरे के विलोम होते है, सदैव नहीं।
3. इसका विग्रह करने पर 'और' अथवा 'या' का प्रयोग होता है।
माता-पिता = माता और पिता
पाप-पुण्य = पाप या पुण्य / पाप और पुण्य
दाल-रोटी = दाल और रोटी
अन्न-जल = अन्न और जल
जलवायु = जल और वायु
भला-बुरा = भला या बुरा
अपना-पराया = अपना या पराया
धर्माधर्म = धर्म या अधर्म
शीतोष्ण = शीत या उष्ण
शीतातप = शीत या आतप
कृष्णार्जुन = कृष्ण और अर्जुन
फल-फूल = फल और फूल
रुपया-पैसा = रुपया और पैसा
नील-लोहित = नीला और लोहित (लाल)
सुरासर = सुर या असुर/सुर और असुर
यशापयश = यश या अपयश
शस्त्रास्त्र = शस्त्र और अस्त्र
बहुब्रीहि समास
1. बहुब्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नही होता।
2. इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है।
3. इसका विग्रह करने पर 'वाला, है, जो जिसका, जिसकी, जिसके, वह' आदि आते है।
गजानन = गज का आनन है जिसका वह (गणेश)
चतुर्भुज = चार भुजाएँ है जिसकी वह (विष्णु)
घनश्याम = घन जैसा श्याम है जो वह (विष्णु)
चन्द्रचूड़ = चन्द्र चूड़ पर है जिसके वह
गिरिधर = गिरि को धारण करने वाला है जो वह
नीललोहित = नीला है लहू जिसका वह
सुग्रीव = सुन्दर है ग्रीवा जिसकी वह
नीलकण्ठ = नीला कण्ठ है जिसका वह
मयूरवाहन = मयूर है वाहन जिसका वह
कमलनयन = कमल के समान नयन है जिसके वह
अष्टाध्यायी = अष्ट अध्यायों की पुस्तक है जो वह
चन्द्रमुखी = चन्द्रमा में समान मुखवाली है जो वह
दिगम्बर = दिशाएँ ही है जिसका अम्बर ऐसा वह
षडानन = षट् (छः) आनन है जिसके वह (कार्तिकेय)
आजानुबाहु = जानुओं (घुटनों) तक बाहुएँ है जिसकी वह
कुशाग्रबुद्धि = कुश के अग्रभाग के समान बुद्धि है जिसकी वह
त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके वह (शिव)
दशानन = दश आनन हैं जिसके वह (रावण)
पीताम्बर = पीत अम्बर हैं जिसके वह (विष्णु)
मुरारि = मुर का अरि है जो वह
आशुतोष = आशु (शीघ्र) प्रसन्न होता है जो वह
वज्रपाणि = वज्र है पाणि में जिसके वह
मधुसूदन = मधु को मारने वाला है जो वह
महादेव = देवताओं में महान् है जो वह
वाल्मीकि = वाल्मीक से उत्पन्न है जो वह
कनकटा = कटे हुए कान है जिसके वह
जितेन्द्रिय = जीत ली है इन्द्रियाँ जिसने वह
मन्द बुद्धि = मन्द है बुद्धि जिसकी वह
द्विगु समास
1. द्विगु समास में प्रायः पूर्वपद संख्यावाचक होता है तो कभी-कभी परपद भी संख्यावाचक देखा जा सकता है।
2. द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं, जैसा की बहुब्रीहि समास में देखा है।
3. इसका विग्रह करने पर 'समूह' या 'समाहार' शब्द प्रयुक्त होता है।
दोराहा = दो राहो का समाहार
सम्पादक द्वय = दो सम्पादकों का समूह
पक्षद्वय = दो पक्षो का समूह
त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
त्रिलोक या त्रिलोकी = तीन लोकों का समाहार
संकलन-त्रय = तीन का समाहार
चौमास/चतुर्मास = चार मासों का समाहार
चतुर्भुज = चार भुजाओं का समाहार (रेखीय आकृति)
पंचामृत = पाँच अमृतों का समाहार
पंचवटी = पाँच वटों का समाहार
सप्ताह = सप्त अहों (सात दिनों) का समाहार
सप्तशती = सप्त शतकों का समाहार
अष्ट-सिद्धि = आठ सिद्धियों का समाहार
नवरात्र = नौ रात्रियों क समाहार
शतक = सौ का समाहार
शताब्दी = शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समाहार
त्रिरत्न = तीन रत्नों का समूह
भुवन-त्रय = तीन भुवनो का समाहार
चतुर्वर्ण = चार वर्णों क समाहार
पंचपात्र = पाँच पात्रों का समाहार
षट्भुज = षट् (छः) भुजाओं का समाहार
सतसई = सात सौ का समाहार
सप्तर्षि = सात ऋषियों का समूह
नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
दशक = दश का समाहार
कर्मधारय समास
1. कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है तो दूसरा विशेष्य।
2. इसमें कहीं कहीं उपमेय उपमान का सम्बन्ध होता है तथा विग्रह करने पर 'रूपी' शब्द प्रयुक्त होता है।
पुरुषोत्तम = पुरुष जो उत्तम
महापुरुष = महान् है जो पुरुष
पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
नराधम = अधम है जो नर
रक्ताम्बर = रक्त के रंग का (लाल) जो अम्बर
कुपुत्र = कुत्सित जो पुत्र
चरम-सीमा = चरम है जो सीमा
कृष्ण-पक्ष = कृष्ण (काला) है जो पक्ष
शुभागमन = शुभ है जो आगमन
मृग नयन = मृग के समान नयन
राजर्षि = जो राजा भी है और ऋषि भी
मुख-चन्द्र = मुख रूपी चन्द्रमा
भव-सागर = भव रूपी सागर
क्रोधाग्नि = क्रोध रूपी अग्नि
विद्या-धन = विद्यारूपी धन
सदाशय = सत् है जिसका आशय
कदाचार = कुत्सित है जो आचार
सत्परामर्श = सत् है जो परामर्श
न्यूनार्थक = न्यून है जिसका अर्थ
नीलकमल = नीला जो कमल
घन-श्याम = घन जैसा श्याम
महर्षि = महान् है जो ऋषि
अधमरा = आधा है जो मरा
कुमति = कुत्सित जो मति
दुष्कर्म = दूषित है जो कर्म
लाल-मिर्च = लाल है जो मिर्च
मंद-बुद्धि = मंद है जो बुद्धि
नीलोत्पल = नीला है जो उत्पल
चन्द्र मुख = चन्द्र जैसा मुख
नरसिंह = जो नर भी है और सिंह भी
वचनामृत = वचनरूपी अमृत
चरण-कमल = चरण रूपी कमल
चरणारविन्द = चरण रूपी अरविन्द
सन्मार्ग = सत् है जो मार्ग
नवयुवक = नव है जो युवक
बहुमूल्य = बहुत है जिसका मूल्य
अल्पेच्छ = अल्प है जिसकी इच्छा
शिष्टाचार = शिष्ट है जो आचार