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From Karnataka Open Educational Resources
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#[http://www.ncert.nic.in/rightside/links/pdf/h_focus_group/Shikshak%20Shiksha.pdf Teacher Education for Curriculum Renewal पाठ्यक्रम नवीकरण के लिए अध्यापक शिक्षा]
 
#[http://www.ncert.nic.in/rightside/links/pdf/h_focus_group/Shikshak%20Shiksha.pdf Teacher Education for Curriculum Renewal पाठ्यक्रम नवीकरण के लिए अध्यापक शिक्षा]
 
#[http://www.ncert.nic.in/rightside/links/pdf/h_focus_group/Pariksha%20Sudhar.pdf Examination Reform परीक्षा सुधार]
 
#[http://www.ncert.nic.in/rightside/links/pdf/h_focus_group/Pariksha%20Sudhar.pdf Examination Reform परीक्षा सुधार]
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=पाठयक्रम उद्देश्य=
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Translated by Dhawad MRP team from Prof Ramakant Agnihotri article [https://academia.edu/5905884/Multilingualaity_and_the_teaching_of_English_in_India Multi-linguality and teaching of English in India]
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हमें हिंदी भाषा उद्देश्यों की रचना करने से पहले भाषा का स्वरूप व उसका अधिग्रहण करने केलिए कुछ बुनियादी तथ्यों को याद करने की अवश्यकता है| इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
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हर बच्चा जन्म से ही भाषा स्ंकाय को लिए पैदा होकर, अवश्यकता के अनुगुण अपने आपको कई भाषाओं को अर्जित करने के लिए सक्षम बनाता है |
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भाषा सिखाया नहीं जाता बल्की अर्जित किया जाता है| बच्चे की भाषा स्ंकाय का स्ंपर्क सामाजीकरण की प्रक्रियाओं से जब होता है तब भाषा सामाजिक, राजनीतिक, लिंग और समाज की सत्ता संरचनाओं के साथ अल्ंघनीय रूप से जुड जाता है|
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भाषा को नियमों के अनुसार सिख़ाना शिक्षकों के बस की बात नहीं है क्योंकि वे खुद इस् दिशा में परिपूर्ण नहीं हैं (गलती उनकी नहीं है क्योंकि आजकल के उपलब्ध पाठशाला व्याकरण पर्याप्त विषय वस्तु को प्रतिपाधित नहीं करता है और कई बार गलतियों से युक्त भी है|) बच्चे में शब्द, वाक्य रचना व वार्तालाप स्तरीय, बहुदा जटिल व्याकरणिक नियमों को अर्जित करने की दुर्लब क्षमता रखता है| साधारण तौर पर एक तीन साल की बच्ची बुनियादी शब्दकोश के नियम, व संरचनाओं और वार्तालाप के जरिए  'भाषाई वयस्क' के रूप में होने का सबूत है|
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औपचारिक व्याकरण  शिक्षा से वह सृजनात्मकता, भाषा प्रभुत्वता और सटीकता को हासिल नहीं करा सकता जो एक  छोटा सा बच्चा बिना कोई औपचारिक शिक्षा के हस्तक्षेप के बिना बडी आसानी के साथ कर पाता है| वास्तव में ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा प्रक्रिया के दौरान भाषा की त्रृटियों का भरपूर आन्ंद उठाते हैं|।
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बचपन में बच्चे को अपनी मातृभाषा व उससे अतिरिक्त भाषाओं को अर्जित करने में कोई विशेष प्रयास की अपेक्षा न होने के बारे में विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है।  शिक्षक की भूमिका व्याकरण के नियमों को पढाने में या
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ग्रंथों का संक्षिप्त व्याख्या करने में नहीं है बल्की  Krashen अक्सर हमें याद दिलाते हैं कि बच्चों को बहुभाषाओं के विभिन्न् क्षेत्रों से परिचित कराने का मुक्त वातावरण में उनका मार्गदर्शन करना है।  बच्चों को दिये गए क्रियाकलापों का मुख्य आशय व स्ंदेश के होने के साथ साथ उनकी सोचने की क्षमता को बढाना; सोच भाषा से अलग नहीं है, भाषा प्रभुत्व सहजता से विकसित होता है।
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भाषा परस्पर एक दूसरे के स्ंगत में सीखी जाती है; स्वरूप से वे मूलतः पनपता है; अन्य भाषाओं से स्ंपृक्त रहकर बिसरी जाती है।
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'तृटियां' भाषा सीखने की प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों में अनिवार्य है; आगे चलकर वे लुप्त हो जाते हैं। शिक्षक द्वारा तृटियों को सुधारने में जो समय नष्ट होता है (वे तृटियां बच्चे के वातावरण के हिसाब से सही है।) वही समय बच्चे को विभिन्न भाषाओं से परिचित कराने
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की प्रक्रिया के अंतर्गत उचित योजना तैयार करते हुए नवीनतम् क्रियाकलापों के जरिए बहु भाषाओं से सुपरिचित कराना ही उचित है।
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भाषा मात्र कौशलों की माला ही नहीं सु, बो, प्, लि (सुनना, बोलना, पढना, लिखना) उपर्युक्त व्याख्या के अनुसार, वह हममें से एक है; यह  एक साधन भी है और म्ंजिल भी है  और इन् दोनों का अलग रूप से व्याख्या देना, इन्हें अपने आप में एक अद्भुत ज्ञान है।
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भाषा को समग्र रूप से अर्जित किया जाता है जहां संपूर्ण पठ्य वस्तु (वह एक तस्वीर, एक दोहा, एक कहानी, अथवा एक विज्ञापन)कक्षा के क्रियाकलाप का केंद्रबिंदु बने।
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