Line 478: |
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| दौड़ना – दौड़ाना – दौड़वाना <br> | | दौड़ना – दौड़ाना – दौड़वाना <br> |
| ओढ़ना – ओढ़ाना – ओढ़वाना<br> | | ओढ़ना – ओढ़ाना – ओढ़वाना<br> |
| + | |
| + | |
| + | |
| | | |
| =='''कन्नड में अनुवाद'''== | | =='''कन्नड में अनुवाद'''== |
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| गणेश नायक<br> | | गणेश नायक<br> |
| | | |
− | =='''व्यक्तिगत पत्र''== | + | =='''व्यक्तिगत पत्र'''== |
| + | |
| '''पिता को पत्र'''<br> | | '''पिता को पत्र'''<br> |
| | | |
| दिनांक : 13-04-2016<br> | | दिनांक : 13-04-2016<br> |
| + | |
| पूज्य पिताजी,<br> | | पूज्य पिताजी,<br> |
| सादर प्रणाम।<br> | | सादर प्रणाम।<br> |
| + | |
| मैं यहाँ आपके आशीर्वाद से कुशल हूँ। आपका पत्र मिला, पढ़कर बहुत खुशी हुई। मेरि | | मैं यहाँ आपके आशीर्वाद से कुशल हूँ। आपका पत्र मिला, पढ़कर बहुत खुशी हुई। मेरि |
| पढ़ाई ठीक चल रही है। आपकी आज्ञानुसार मन लगाकर दिन-रात पढ़ाई में व्यस्त रहती हूँ।<br> | | पढ़ाई ठीक चल रही है। आपकी आज्ञानुसार मन लगाकर दिन-रात पढ़ाई में व्यस्त रहती हूँ।<br> |
Line 652: |
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| सरस्वती स्कूल के समीप<br> | | सरस्वती स्कूल के समीप<br> |
| एल्लोडु, गुडिबंडे ता. ५६१२०९<br> | | एल्लोडु, गुडिबंडे ता. ५६१२०९<br> |
| + | |
| + | =='''निबंध लेखन'''== |
| + | '''प्रस्तावना'''<br> |
| + | हमारे आस-पास के वातावरण को हम पर्यावरण कहते है। इसके तहत हवा, पानी, मिट्टी, पेड़, पर्वत आदि आते हैं। पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं।<br> |
| + | |
| + | '''पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार'''<br> |
| + | I) '''जल प्रदुषण'''<br> |
| + | II) '''थल प्रदुषण'''<br> |
| + | III)'''वायु प्रदुषण'''<br> |
| + | IV) '''ध्वनि प्रदुषण'''<br> |
| + | |
| + | I) '''जल प्रदुषण'''<br> |
| + | ''''जल प्रदुषण के प्रमुख कारण''''<br> |
| + | 1) गाँव , कस्बो का नगरो व महा-नगरो में रुपान्तरण<br> |
| + | 2) कारखानों के द्वारा<br> |
| + | 3) अनुचित रूप से कृषि कर अपशिष्ट प्रवाह करना<br> |
| + | 4) धार्मिक और सामाजिक रूप से दुरुपयोग आदि ।<br> |
| + | |
| + | II) '''थल प्रदुषण'''<br> |
| + | थल प्रदुषण के प्रमुख कारण <br> |
| + | 1)वनों की कटाई और मिट्टी का कटाव<br> |
| + | 2)प्लास्टिक के पदार्थों का उपयोग<br> |
| + | 3)खनीज पदार्थो का अत्यधिक उपयोग<br> |
| + | 4)बिजली का अधिक मात्रा मे उपयोग आदि ।<br> |
| + | |
| + | III) '''वायु प्रदुषण''' <br> |
| + | वायु प्रदुषण के मुख्य कारण <br> |
| + | 1) वाहनों का तेजी से उपयोग<br> |
| + | 2 )रोजमर्रा की जिंदगी की होने वाले प्रदुषण<br> |
| + | 3) कारखानों के धुए से प्रदुषण आदि ।<br> |
| + | |
| + | IV) '''ध्वनि प्रदुषण'''<br> |
| + | ध्वनि प्रदुषण के मुख्य कारण<br> |
| + | 1) स्पीकर के उपयोग से<br> |
| + | 2) आधुनिक साधनों के उपयोग से<br> |
| + | 3) परिवहन के साधनों के उपयोग से आदि ।<br> |
| + | |
| + | ''''उपसंहार'''' <br> |
| + | हम सब का जीवन पर्यावरण पर आश्रित है। आज पृथ्वी के वायुमंडल में प्राण वायु पीने का पानी आदि तत्व कम होते जा रहे हैं और दूसरे हानिकारक तत्व बढ़ते जा रहे हैं। अतएव हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने, पानी को साफ रखने, ध्वनी प्रदूषण आदि को रोकने के प्रयत्न करना चाहिए। <br> |
| + | |
| + | २} '''समय का सदुपयोग'''<br> |
| + | ''''प्रस्तावना''''<br> |
| + | सचमुच, समय एक अनमोल वस्तु है। संसार में कोई भी वस्तु मिल सकती हैं, किन्तु खोया हुआ समय फिर हाथ नहीं आता। दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो गुजरे हुए घण्टों को फिर से बजा दे। समय के सदुपयोग पर ही हमारे जीवन की सफलता प्राय: निर्भर रहती है। वास्तव में अपने बहुमूल्य जीवन की कीमत वह मनुष्य समझता है, जो एक पल की कीमत समझता है। समय का जिसने सदुपयोग कर लिया, उसने अपने जीवन का सदुपयोग कर लिया।<br> |
| + | |
| + | दुरुपयोग<br> |
| + | यह दुख की बात है कि कई लोग समय का दुरुपयोग करते हैं। सबेरे आठ बजे तक तो उनकी आँखें नींद में ही डूबी रहती हैं। फिर उठते हैं, तो आधा घंटा आलस्य उतारने में ही बीत जाता हैं| दिनभर में जीतने घंटे हम काम करते हैं, तो उसे कई गुना अधिक समय फिजूल की बातों में और निरर्थक कामों में बिताते हैं। कई लोग तो दिन भर ताश और शतरंज की बाजी में उलझे रहते हैं। यद्यपि हमारे जीवन में मनोरंजन समय का सदुपयोग करने के लिए हमें प्रत्येक कार्य निश्चित समय में ही पूरा करने का प्रयत्न करना चाहिए|। कुछ दिनों के निरन्तर अभ्यास से हमें समय का उचित उपयोग करने की आदत पड़ जाएगी और हमें जीवन को सफल बनाने की कुंजी मिल जाएगी।<br> |
| + | |
| + | सदुपयोग<br> |
| + | समय का विभाजन कर हम अध्ययन, व्यायाम, सत्संग, समाज-सेवा, मनोरंजन आदि अनेक कार्य सरलतापूर्वक कर सकते हैं। इससे न तो हमें काम बोझ मालूम होगा और न ही "अब कौन-सा काम करें ?" यह सोचने में समय नष्ट होगा।<br> |
| + | |
| + | अपने समय का सदुपयोग किये बिना कोई भी व्यक्ति महान् नहीं बन सकता। दुनियाँ के महापरुष समय की कीमत जानते थे, इसलिए वे महान बन सके| समय का सदुपयोग करके ही वे संसार में अमर कीर्ति प्राप्त कर सके थे। वाटरलू युद्ध में यदि एक सरदार चन्द घड़ियों की देरी न कर देता, तो नेपोलियन अपनी घोर पराजय से बच जाता।<br> |
| + | |
| + | ''''उपसंहार''''<br> |
| + | यदि हमें अपने जीवन से प्रेम हैं, तो हमें अपने बहुमूल्य समय को कभी भी नष्ट कर देता है। हमें कबीर का यह दोहा ध्यान में रखना चाहिए - "कल करे सो आज कर , आज करे सो अब।<br> |
| + | पल में परलै होयगी, बहुरि करैगा का।"<br> |
| + | |
| + | '''स्कूल की पुस्तकालय'''<br> |
| + | प्रस्थावना<br> |
| + | ज्ञान-विज्ञान की असीम प्रगति के साथ पुस्तकालयों की सामाजिक उपयोगिता और अधिक बढ़ गयी हैI युग-युग कि साधना से मनुष्य ने जो ज्ञान अर्जित किया है वह पुस्तकों में संकलित होकर पुस्तकालयों में सुरक्षित है|<br> |
| + | |
| + | वे जनसाधारण के लिए सुलभ होती हैंI पुस्तकालयों में अच्छे स्तर कि पुस्तकें रखी जाती हैं; उनमें कुछेक पुस्तकें अथवा ग्रन्थमालाएं इतनी महँगी होती हैं कि सर्वसाधारण के लिए उन्हें स्वयं खरीदकर पढ़ना संभव नहीं होताI यह बात संदर्भ ग्रंथों पर विशेष रूप से लागु होती हैI बड़ी-बड़ी जिल्दों के शब्दकोशों और विश्वकोशों तथा इतिहास-पुरातत्व कि बहुमूल्य पुस्तकों को एक साथ पढ़ने का सुअवसर पुस्तकालयों में ही संभव हो पाता है| इतना ही नहीं, असंख्य दुर्लभ और अलभ्य पांडुलिपियां भी हमें पुस्तकालयों में संरक्षित मिलती हैं| <br> |
| + | |
| + | ''''उपसंहार'''' <br> |
| + | आज आवश्यकता है कि नगर-नगर में अच्छे और संपन्न पुस्तकालय खुलें जिससे बच्चों की पुस्तकें पढ़ने में रूचि बढ़े और देश कि युवा प्रतिभाओं के विकास के सुअवसर सहज सुलभ हों|<br> |
| + | |
| + | ४} '''समाचार पत्र''' <br> |
| + | ''''प्रस्तावना'''' <br> |
| + | आज के युग में समाचार पत्र मनुष्यन की दिनचर्या का आवश्यतक अंग बन गया है। प्रात:काल से ही मनुष्यय को इसका इंतजार रहता है। समाज की उन्नुति में इसका अहम योगदान रहा है।<br> |
| + | |
| + | लाभ<br> |
| + | हमारे आसपास व देश-विदेश की घटनाओं की जानकारी समाचार पत्र से ही प्राप्तद होती है। समाचार पत्र का प्रकाशन कलकत्ता से प्रारंभ हुआ। पूर्व में समाचार पत्र का उपयोग सैनिकों द्वारा सूचना देने के लिए किया जाता था। |
| + | हमें हर तरह की जानकारी इससे ही मिलती है। शिक्षा, खेल, मनोरंजन, साहित्यर आदि की प्रमुख खबरें दैनिक समाचार में प्रकाशित होती हैं। हर देश में भिन्नल-भिन्नज भाषाओं में इसका प्रकाशन होता है। दैनिक समाचार पत्र के अलावा मासिक, पाक्षिक व साप्तानहिक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। |
| + | हमें समाचार पत्र से घर बैठे देश-विदेश की गतिविधि का पता चल जाता है। समाचार के लेख, खबरें समाज की उन्नेति में इनका विशिष्टव योगदान रहा है। <br> |
| + | |
| + | ''''उपसंहार'''' <br> |
| + | समाचार पत्र के अलावा हमें टीवी, इंटरनेट पर भी खबरों की सुविधा मिल जाती है। यह न्याय के खिलाफ हमेशा तत्पर रहता है। पहले इतने साधन नहीं थे, लेकिन अब समाचार पत्र के कारण हमें नई-नई ज्ञान की बातें भी मिलती है। <br> |
| + | |
| + | ५} '''बेरोजगारी की समस्या'''<br> |
| + | प्रस्तावना |
| + | प्राचीन काल में भारत आर्थिक दृष्टि से पूर्णत: सम्पन्न था । तभी तो यह ‘ सोने की चिड़िया ‘ के नाम से विख्यात था । किन्तु, आज भारत आर्थिक दृष्टि से विकासशील देशों की श्रेणी में है । आज यहाँ कुपोषण और बेरोजगारी है । <br> |
| + | |
| + | बेरोजगारी का अर्थ<br> |
| + | काम करने योग्य इच्छुक व्यक्ति को कोई काम न मिलना । <br> |
| + | |
| + | बेरोजगारी का रूप <br> |
| + | बेरोजगारी में एक वर्ग तो उन लोगों का है, जो अशिक्षित या अर्द्धशिक्षित हैं और रोजी-रोटी की तलाश में भटक रहे हैं । दूसरा वर्ग उन बेरोजगारों का है जो शिक्षित हैं, जिसके पास काम तो है, पर उस काम से उसे जो कुछ प्राप्त होता है, वह उसकी आजीविका के लिए पर्याप्त नहीं है । बेरोजगारी की इस समस्या से शहर और गाँव दोनों आक्रांत हैं ।<br> |
| + | |
| + | बेरोजगारी का कारण<br> |
| + | हमारे देश में बेरोजगारी की इस भीषण समस्या के अनेक कारण हैं । उन कारणों में लॉर्ड मैकॉले की दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति, जनसंख्या की अतिशय वृद्धि, बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना के कारण कुटीर उद्योगों का ह्रास आदि प्रमुख हैं । आधुनिक शिक्षा प्रणाली में रोजगारोन्मुख शिक्षा व्यवस्था का सर्वथा अभाव है । इस कारण आधुनिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों के सम्मुख भटकाव के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रह गया है । बेरोजगारी की विकराल समस्या के समाधान के लिए कुछ राहें तो खोजनी ही पड़ेगी । इस समस्या के समाधान के लिए गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए ।<br> |
| + | |
| + | ''''उपसंहार'''' <br> |
| + | भारत में बेरोजगारी की समस्या का हल आसान नहीं है, फिर भी प्रत्येक समस्या का समाधान तो है ही । इस समस्या के समाधान के लिए मनोभावना में परिवर्तन लाना आवश्यक है । मनोभावना में परिवर्तन का तात्पर्य है – किसी कार्य को छोटा नहीं समझना । <br> |
| + | |
| + | =='''समास के उदा'''== |
| + | {| class="wikitable" |
| + | |- |
| + | !अव्ययीभाव |
| + | !कर्मधारय |
| + | !तत्पुरुष |
| + | !द्विगु |
| + | !द्वंद्व |
| + | !बहुव्रीहि |
| + | |- |
| + | |प्रतिदिन |
| + | |नीलकमल |
| + | |जलप्रपात |
| + | |चौमासा |
| + | |श्रद्धा-भक्ति |
| + | |वीणापाणी |
| + | |- |
| + | |भरपेट |
| + | |पीतांबर |
| + | |राजवंश |
| + | |नौरात्री |
| + | |होश-हवास |
| + | |धनश्याम |
| + | |- |
| + | |आजन्म |
| + | |नीलकंठ |
| + | |राजमहल |
| + | |सतसई |
| + | |देश-विदेश |
| + | |श्वेतांबर |
| + | |- |
| + | |बेखटके |
| + | |कनकलता |
| + | |सत्याग्रह |
| + | |त्रिधारा |
| + | |राम-लक्षण |
| + | |लंबोदर |
| + | |- |
| + | |यथासंभव |
| + | |चंद्रमुख |
| + | |ग्रंथकार |
| + | |पंचवटी |
| + | |सीता-राम |
| + | |चक्रपाणि |
| + | |- |
| + | |अनजाने |
| + | |मुखचंद्र |
| + | |गगनचुंबी |
| + | |त्रिवेणी |
| + | |पाप-पुण्य |
| + | |त्रिनेत्र |
| + | |- |
| + | |प्रत्येक |
| + | |करामल |
| + | |परलोकगमन |
| + | |शताब्दी |
| + | |सुबह-श्याम |
| + | |दशानन |
| + | |- |
| + | |प्रतिमाह |
| + | |सद्धर्म |
| + | |देशप्रेम |
| + | |चौराह |
| + | |सुख-दुख |
| + | |नीलकंठ |
| + | |- |
| + | |आमरण |
| + | |धरणीधर |
| + | |रेखांकित |
| + | |बारहमासा |
| + | |दाल-रोटी |
| + | |चतुरानन |
| + | |- |
| + | |
| + | |
| + | =='''संधि के उदा'''== |
| + | {| class="wikitable" |
| + | |- |
| + | !दीर्घ संधि शब्द |
| + | !गुण संधि शब्द |
| + | !वृधि संधि शब्द |
| + | !यण संधि शब्द |
| + | !अयादि संधि शब्द |
| + | |- |
| + | |पर्वतावली |
| + | |गजेंद्र |
| + | |एकैक |
| + | |अत्यधिक |
| + | |चयन |
| + | |- |
| + | |सहानुभूति |
| + | |परमेश्वर |
| + | |मतैक्य |
| + | |इत्यादि |
| + | |नयन |
| + | |- |
| + | |संग्रहालय |
| + | |महेंद्र |
| + | |सदैव |
| + | |प्रत्युपकार |
| + | |गायक |
| + | |- |
| + | |जलाशय |
| + | |रमेश |
| + | |महैश्वर्य |
| + | |मन्वंतर |
| + | |नायिका |
| + | |- |
| + | |समानाधिकार |
| + | |वार्षिकोत्सव |
| + | |परमौज |
| + | |स्वागत |
| + | |भवन |
| + | |- |
| + | |धर्मात्मा |
| + | |जलोर्मि |
| + | |वनौषध |
| + | |पित्रानुमति |
| + | |पावन |
| + | |- |
| + | |विद्यार्थी |
| + | |महोत्सव |
| + | |महौजस्वी |
| + | |पित्राज्ञा |
| + | |नाविक्क |
| + | |- |
| + | |विद्यालय |
| + | |महोर्मि |
| + | |महौषधि |
| + | |पित्रुपदेश |
| + | |नायक |
| + | |- |
| + | |कवींद्र |
| + | |सप्तर्षि |
| + | |हरेक |
| + | |अत्यंत |
| + | |सावन |
| + | |- |
| + | |गिरीश |
| + | |महर्षि |
| + | |तथैव |
| + | |अत्यानंद |
| + | |भावुक |
| + | |- |
| + | |महींद्र |
| + | |परोपकार |
| + | |महौज |
| + | |प्रत्येक |
| + | |पवित्र |
| + | |- |
| + | |रजनीश |
| + | |नरेंद्र |
| + | |नरैश्वर्य |
| + | |प्रत्युत्तर |
| + | | |
| + | |- |
| + | |लघूत्तर |
| + | |राकेश |
| + | |परमौषध |
| + | |अन्वय |
| + | | |
| + | |- |
| + | |सिंधूजा |
| + | |नरोत्तम |
| + | | |
| + | |मात्रादेश |
| + | | |
| + | |- |
| + | |वधूत्सव |
| + | |गंगोर्मि |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |भूर्जा |
| + | |महोदर |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |