Difference between revisions of "हिन्दी: व्याकरण"

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सरयूर्मि = सरयू + ऊर्मि<br>
 
सरयूर्मि = सरयू + ऊर्मि<br>
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==गुण सन्धि==
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अ या आ के साथ इ या ई के मेल से ‘ए’ ( Ú ), अ या आ के साथ उ या ऊ के मेल से ‘ओ’ ( ो ) तथा अ या आ के साथ ऋ के मेल से ‘अर’बनता है यथा <br>
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अ + इ = ए<br>
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सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र<br>
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स्व + इच्छा = स्वेच्छा<br>
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विच्छेद<br>
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नेति = न + इति<br>
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भारतेन्दु = भारत + इन्दु<br>
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अ + ई = ए<br>
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नर + ईश = नरेश<br>
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सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण<br>
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विच्छेद<br>
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गणेश = गण + ईश<br>
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प्रेक्षा = प्र + ईक्षा<br>
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आ + इ = ए<br>
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महा + इन्द्र = महेन्द्र<br>
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यथा +इच्छा = यथेच्छा<br>
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विच्छेद<br>
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राजेन्द्र = राजा + इन्द्र<br>
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यथेष्ट = यथा + इष्ट<br>
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आ + ई = ए<br>
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राका + ईश = राकेश<br>
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द्वारका +ईश = द्वारकेश<br>
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विच्छेद<br>
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रमेश = रमा + ईश<br>
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मिथिलेश = मिथिला + ईश<br>
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अ + उ = ओ ओ<br>
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पर+उपकार = परोपकार<br>
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सूर्य + उदय = सूर्योदय<br>
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विच्छेद<br>
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प्रोज्ज्वल = प्र + उज्ज्वल<br>
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सोदाहरण = स + उदाहरण<br>
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अन्त्योदय = अन्त्य + उदय<br>
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अ + ऊ = ओ<br>
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ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि<br>
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नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा<br>
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विच्छेद<br>
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समुद्रोर्मि = समुद्र + ऊर्मि<br>
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जलोर्जा = जल + ऊर्जा<br>
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आ + उ = ओ ओ<br>
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महा + उदय = महोदय<br>
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यथा+उचित = यथोचित<br>
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विच्छेद<br>
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शारदोपासक = शारदा + उपासक<br>
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महोत्सव = महा + उत्सव<br>
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आ + ऊ = ओ ओ<br>
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गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि<br>
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महा + ऊर्जा = महोर्जा<br>
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विच्छेद<br>
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यमुनोर्मि = यमुना + ऊर्मि<br>
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महोरू = महा + ऊरू<br>
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अ + ऋ = अर्<br>
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देव + ऋषि = देवर्षि<br>
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शीत + ऋतु = शीतर्तु<br>
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विच्छेद<br>
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सप्तर्षि = सप्त + ऋषि<br>
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उत्तमर्ण = उत्तम + ऋण<br>
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आ + ऋ = अर्<br>
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महा + ऋषि = महर्षि<br>
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विच्छेद<br>
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राजर्षि = राजा + ऋषि<br>
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( पपप) वृद्धि सन्धि: अ या आ के साथ ‘ए’ या ‘ऐ’ के मेल से ‘ऐ’ ( ै ) तथा अ या<br>
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आ के साथ ‘ओ’ या ‘औ’ के मेल से ‘औ’ ( ौ ) बनता है। यथा:<br>
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अ + ए = ऐ<br>
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मत + एकता = मतैकता<br>
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धन + एषणा = धनैषणा<br>
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विच्छेद<br>
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एकैक = एक + एक<br>
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विश्वैकता = विश्व + एकता<br>
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अ + ऐ = ऐ<br>
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ज्ञान+ऐश्वर्य = ज्ञानैश्वर्य<br>
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स्व+ऐच्छिक = स्वैच्छिक<br>
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विच्छेद<br>
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मतैक्य = मत + ऐक्य<br>
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देवैश्वर्य = देव + ऐश्वर्य<br>
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आ + ए = ऐ<br>
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सदा + एव = सदैव<br>
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वसुधा + एव = वसुधैव<br>
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विच्छेद<br>
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महैषणा = महा+एषणा<br>
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तथैव = तथा + एव<br>
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आ + ऐ = ऐ<br>
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महा+ऐश्वर्य = महैश्वर्य<br>
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विच्छेद<br>
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गंगैश्वर्य = गंगा + ऐश्वर्य<br>
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अ + ओ = औ<br>
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दूध + ओदन = दूधौदन<br>
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जल + ओघ = जलौघ<br>
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विच्छेद<br>
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परमौज = परम + ओज<br>
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घृतौदन = घृत + ओदन<br>
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अ + औ = औ<br>
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वन+औषध = वनौषध<br>
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तप+औदार्य = तपौदार्य<br>
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विच्छेद<br>
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भावौचित्य = भाव + औचित्य<br>
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भावौदार्य = भाव + औदार्य<br>
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आ + ओ = औ<br>
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महा + ओज = महौज<br>
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गंगा + ओघ = गंगौघ<br>
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विच्छेद<br>
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महौजस्वी = महा + ओजस्वी<br>
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आ + औ = औ<br>
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महा+औषध = महौषध<br>
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यथा+औचित्य = यथौचित्य<br>
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विच्छेद<br>
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महौत्सुक्य = महा + औत्सुक्य<br>
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महौदार्य = महा + औदार्य<br>
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==यण सन्धि==
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इ या ई के साथ इनके अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर इ या ई के स्थान पर ‘य्’ उ या ऊ के साथ इनके अतिरिक्त अन्य स्वर के मेल पर उ या ऊ के स्थान पर ‘व्’ तथा‘ऋ’
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के साथ अन्य किसी स्वर<br>
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के मेल पर ‘र्’ बन<br>
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जायेगा तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा य्, व्, ‘र्’ में लग जायेगी। यथा<br>
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अति + अधिक = अत्यधिक<br>
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सु + आगत = स्वागत<br>
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पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा<br>
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इसमें विच्छेद करते समय य, व तथा ‘र’ के पूर्व आये हलन्त वर्ण में क्रमशः<br>
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इ, ई;<br>
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उ ऊ<br>
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तथा ऋ की मात्रा लगा देंगे तथा य, व, र में जो स्वर है उस स्वर<br>
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के प्रारम्भ से पिछला शब्द<br>
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लिख देंगे यथा <br>
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अत्याचार = अति + आचार<br>
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अन्वीक्षण = अनु + ईक्षण<br>
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मात्रनुमति = मातृ + अनुमति<br>
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अभ्यासार्थ अन्य उदाहरण देखिए-<br>
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इ + अ = य<br>
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अति + अल्प = अत्यल्प<br>
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अधि + अक्ष = अध्यक्ष<br>
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विच्छेद<br>
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गत्यवरोध = गति + अवरोध<br>
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व्यवहार = वि + अवहार<br>
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यद्यपि = यदि + अपि<br>
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इ + आ = या<br>
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इति + आदि = इत्यादि<br>
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परि + आवरण = पर्यावरण<br>
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विच्छेद<br>
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अभ्यागत = अभि + आगत<br>
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व्यायाम = वि + आयाम<br>
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पर्याप्त = परि + आप्त<br>
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इ + उ = यु<br>
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अभि + उदय = अभ्युदय<br>
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प्रति + उपकार = प्रत्युपकार<br>
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विच्छेद<br>
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रव्युदय = रवि + उदय<br>
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उपर्युक्त = उपरि + उक्त<br>
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इ + ऊ = यू<br>
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नि + ऊन = न्यून<br>
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अधि + ऊढ़ा = अध्यूढ़ा<br>
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विच्छेद<br>
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अध्येय = अधि + एय<br>
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जात्येकता = जाति + एकता<br>
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ई + अ = य<br>
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नदी + अर्पण = नद्यर्पण<br>
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मही + अर्चन = मह्यर्चन<br>
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विच्छेद<br>
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नद्यन्त = नदी + अन्त<br>
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देव्यर्पण = देवी + अर्पण<br>
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ई + आ = या<br>
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मही + आधार = मह्याधार<br>
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विच्छेद<br>
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देव्यागमन = देवी + आगमन<br>
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नद्यामुख = नदी + आमुख<br>
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ई + उ = यु<br>
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वाणी + उचित = वाण्युचित<br>
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नदी + उत्पन्न = नद्युत्पन्न<br>
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विच्छेद<br>
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देव्युपासना = देवी + उपासना<br>
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वाण्युपयोगी = वाणी + उपयोगी<br>
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उ + अ = व<br>
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अनु + अय = अन्वय<br>
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मधु + अरि = मध्वरि<br>
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विच्छेद<br>
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तन्वंगी = तनु + अंगी<br>
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स्वल्प = सु + अल्प<br>
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उ + आ = वा<br>
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गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा<br>
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भानु + आगमन = भान्वागमन<br>
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उ + ई = वी<br>
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अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण<br>
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विच्छेद<br>
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अन्वीक्षा = अनु + ईक्षा<br>
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उ + ए = वे<br>
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अनु + एषण = अन्वेषण<br>
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विच्छेद<br>
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अन्वेषी = अनु + एषी<br>
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ऊ + आ = वा<br>
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वधू + आगमन = वध्वागमन<br>
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विच्छेद<br>
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भ्वादि = भू + आदि<br>
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ऋ + अ = र<br>
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मातृ + अनुमति = मात्रनुमति<br>
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ऋ + आ = रा<br>
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पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा<br>
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ऋ + इ = रि<br>
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मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा<br>
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ऋ + उ = रु<br>
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पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश<br>
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नोट: त् + र के मेल से ‘त्र’ बनता है।<br>
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==अयादि सन्धि==
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ए, ऐ, ओ, औ के साथ अन्य किसी स्वर के मेल पर ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’; ‘ऐ’ के स्थान <br>
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पर ‘आय्’; ओ के स्थान पर ‘अव्’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आव्’ बन जाता है तथा मिलने वाले<br>
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स्वर की मात्रा य् तथा ‘व्’ में लग जाती है। जैसे –<br>
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ने + अन = नयन, गै + अक = गायक<br>
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पो + अन = पवन, पौ + अक = पावक<br>
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सन्धि विच्छेद करते समय ध्यान रखना है कि यदि ‘य’ के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर<br>
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हो तो उसमें ‘ए’ की मात्रा, आ का स्वर हो तो ‘ऐ’ की मात्रा तथा ‘व’ के पहले वाले वर्ण में<br>
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‘अ’ का स्वर हो तो ‘ओ’ की मात्रा तथा ‘आ’ का स्वर हो तो ‘औ’ की मात्रा लगा दें तथा ‘य’<br>
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एवं व में जो स्वर है, उससे अगला शब्द बनालें। यथा –<br>
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विलय = विले + अ, विनायक = विनै + अक<br>
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पवित्र = पो + इत्र, भावुक = भौ + उक<br>
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ए + अ = अय<br>
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विने + अ = विनय<br>
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चे + अन = चयन<br>
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ऐ + अ = आय<br>
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नै + अक = नायक<br>
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विधै + इका= विधायिका<br>
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गै + इका = गायिका<br>
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ओ + अ = अव भो + अन = भवन<br>
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ओ + इ = अवि हो + इष्य = हविष्य<br>
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ओ + ए = अवे गो + एषणा = गवेषणा<br>
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औ + अ = आव पौ + अन = पावन<br>
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औ + इ = आवि नौ + इक = नाविक<br>
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औ + उ = आवु भौ + उक = भावुक<br>

Revision as of 10:45, 3 October 2016

संधि

दो ध्वनियों (वर्णों) के परस्पर मेल को सन्धि कहते हैं।
अर्थात् जब दो शब्द मिलते हैं तो प्रथम शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण)तथा मिलने वाले शब्द की प्रथम ध्वनि के मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते हैं।
ध्वनियों के मेल में स्वर के साथ स्वर (राम+अवतार), स्वर के साथ व्यंजन (आ+छादन), व्यंजन के साथ व्यंजन (जगत्+नाथ), व्यंजन के साथ स्वर (जगत्+ईश),विसर्ग के साथ स्वर (मनःअनुकूल) तथा विसर्ग के सा

प्रकार: सन्धि तीन प्रकार की होती है

  1. स्वर सन्धि
  2. व्यंजन सन्धि
  3. विसर्ग सन्धि

स्वर सन्धि

स्वर के साथ स्वर के मेल को स्वर सन्धि कहते हैं। हिन्दी में स्वर ग्यारह होते हैं। यथा-अ,आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ तथा व्यंजन प्रायः स्वर की सहायता से बोले जाते हैं।
जैसे ‘राम’ में ‘म’ में ‘अ’ स्वर निहित है। ‘राम+अवतार- में ‘म- का ‘अ- तथा अवतार के ‘अ’ स्वर का मिलन होकर सन्धि होगी।

स्वर सन्धि पाँच प्रकार की होती है

  1. दीर्घ सन्धि
  2. गुण सन्धि
  3. वृद्धि सन्धि
  4. यण सन्धि
  5. अयादि सन्धि

दीर्घ सन्धि

अ, इ, उ, लघु या ह्रस्व स्वर हैं और आ, ई, ऊ गुरु या दीर्घ स्वर। अतः

अ या आ के साथ अ या आ के मेल से ‘आ’; ‘इ’ या ‘ई’ के साथ ‘इ’ या ई के मेल से ‘ई’

तथा उ या ऊ के साथ उ या ऊ के मेल से ‘ऊ’ बनता है। जैसे:

अ+अ – आ

नयन + अभिराम = नयनाभिराम

चरण + अमृत = चरणामृत

परम + अर्थ = परमार्थ

स + अवधान = सावधान

विच्छेद

रामानुज = राम + अनुज गीतांजलि = गीत + अंजलि

सूर्यास्त = सूर्य + अस्त मुरारि = मुर + अरि

अ + आ = आ

देव + आलय = देवालय सत्य + आग्रह = सत्याग्रह

रत्न + आकर = रत्नाकर कुश + आसन = कुशासन

विच्छेद

छात्रावास = छात्र + आवास देवानन्द = देव + आनन्द

दीपाधार = दीप + आधार प्रारम्भ = प्र + आरम्भ

आ + अ = आ

सेना + अध्यक्ष = सेनाध्यक्ष विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

तथा + अपि = तथापि युवा + अवस्था= युवावस्था

विच्छेद

कक्षाध्यापक = कक्षा + अध्यापक श्रद्धांजलि = श्रद्धा +अंजलि

सभाध्यक्ष = सभा + अध्यक्ष द्वारकाधीश = द्वारका + अधीश

आ + आ = आ

विद्या + आलय = विद्यालय महा + आशय = महाशय

प्रतीक्षा+आलय = प्रतीक्षालय श्रद्धा + आलु = श्रद्धालु

विच्छेद

चिकित्सालय = चिकित्सा + आलय

कृपाकांक्षी = कृपा + आकांक्षी

मायाचरण = माया + आचरण

दयानन्द = दया + आनन्द

इ + इ = ई

रवि + इन्द्र = रवीन्द्र अभि + इष्ट = अभीष्ट

विच्छेद

गिरीन्द्र = गिरि + इन्द्र अधीन = अधि + इन

इ + ई = ई

हरि + ईश = हरीश परि + ईक्षा = परीक्षा

विच्छेद

अभीप्सा = अभि + ईप्सा अधीक्षक = अधि + ईक्षक

ई + इ = ई

मही + इन्द्र = महीन्द्र लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा

विच्छेद

फणीन्द्र = फणी + इन्द्र श्रीन्दु = श्री + इन्दु

ई + ई = ई

नारी + ईश्वर = नारीश्वर जानकी + ईश = जानकीश

विच्छेद

रजनीश = रजनी + ईश नदीश = नदी + ईश

उ + उ = ऊ

भानु + उदय = भानूदय गुरु + उपदेश = गुरूपदेश

विच्छेद

लघूत्तर = लघु + उत्तर कटूक्ति = कटु + उक्ति

ऊ + ऊ = ऊ

भू + ऊध्र्व = भूध्र्व

भू + ऊष्मा = भूष्मा

विच्छेद

चमूर्जा = चमू + ऊर्जा

सरयूर्मि = सरयू + ऊर्मि

गुण सन्धि

अ या आ के साथ इ या ई के मेल से ‘ए’ ( Ú ), अ या आ के साथ उ या ऊ के मेल से ‘ओ’ ( ो ) तथा अ या आ के साथ ऋ के मेल से ‘अर’बनता है यथा

अ + इ = ए

सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र

स्व + इच्छा = स्वेच्छा

विच्छेद

नेति = न + इति

भारतेन्दु = भारत + इन्दु

अ + ई = ए

नर + ईश = नरेश

सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण

विच्छेद

गणेश = गण + ईश

प्रेक्षा = प्र + ईक्षा

आ + इ = ए

महा + इन्द्र = महेन्द्र

यथा +इच्छा = यथेच्छा

विच्छेद

राजेन्द्र = राजा + इन्द्र

यथेष्ट = यथा + इष्ट

आ + ई = ए

राका + ईश = राकेश

द्वारका +ईश = द्वारकेश

विच्छेद

रमेश = रमा + ईश

मिथिलेश = मिथिला + ईश

अ + उ = ओ ओ

पर+उपकार = परोपकार

सूर्य + उदय = सूर्योदय

विच्छेद

प्रोज्ज्वल = प्र + उज्ज्वल

सोदाहरण = स + उदाहरण

अन्त्योदय = अन्त्य + उदय

अ + ऊ = ओ

ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि

नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा

विच्छेद

समुद्रोर्मि = समुद्र + ऊर्मि

जलोर्जा = जल + ऊर्जा

आ + उ = ओ ओ

महा + उदय = महोदय

यथा+उचित = यथोचित

विच्छेद

शारदोपासक = शारदा + उपासक

महोत्सव = महा + उत्सव

आ + ऊ = ओ ओ

गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि

महा + ऊर्जा = महोर्जा

विच्छेद

यमुनोर्मि = यमुना + ऊर्मि

महोरू = महा + ऊरू

अ + ऋ = अर्

देव + ऋषि = देवर्षि

शीत + ऋतु = शीतर्तु

विच्छेद

सप्तर्षि = सप्त + ऋषि

उत्तमर्ण = उत्तम + ऋण

आ + ऋ = अर्

महा + ऋषि = महर्षि

विच्छेद

राजर्षि = राजा + ऋषि

( पपप) वृद्धि सन्धि: अ या आ के साथ ‘ए’ या ‘ऐ’ के मेल से ‘ऐ’ ( ै ) तथा अ या

आ के साथ ‘ओ’ या ‘औ’ के मेल से ‘औ’ ( ौ ) बनता है। यथा:

अ + ए = ऐ

मत + एकता = मतैकता

धन + एषणा = धनैषणा

विच्छेद

एकैक = एक + एक

विश्वैकता = विश्व + एकता

अ + ऐ = ऐ

ज्ञान+ऐश्वर्य = ज्ञानैश्वर्य

स्व+ऐच्छिक = स्वैच्छिक

विच्छेद

मतैक्य = मत + ऐक्य

देवैश्वर्य = देव + ऐश्वर्य

आ + ए = ऐ

सदा + एव = सदैव

वसुधा + एव = वसुधैव

विच्छेद

महैषणा = महा+एषणा

तथैव = तथा + एव

आ + ऐ = ऐ

महा+ऐश्वर्य = महैश्वर्य

विच्छेद

गंगैश्वर्य = गंगा + ऐश्वर्य

अ + ओ = औ

दूध + ओदन = दूधौदन

जल + ओघ = जलौघ

विच्छेद

परमौज = परम + ओज

घृतौदन = घृत + ओदन

अ + औ = औ

वन+औषध = वनौषध

तप+औदार्य = तपौदार्य

विच्छेद

भावौचित्य = भाव + औचित्य

भावौदार्य = भाव + औदार्य

आ + ओ = औ

महा + ओज = महौज

गंगा + ओघ = गंगौघ

विच्छेद

महौजस्वी = महा + ओजस्वी

आ + औ = औ

महा+औषध = महौषध

यथा+औचित्य = यथौचित्य

विच्छेद

महौत्सुक्य = महा + औत्सुक्य

महौदार्य = महा + औदार्य

यण सन्धि

इ या ई के साथ इनके अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर इ या ई के स्थान पर ‘य्’ उ या ऊ के साथ इनके अतिरिक्त अन्य स्वर के मेल पर उ या ऊ के स्थान पर ‘व्’ तथा‘ऋ’ के साथ अन्य किसी स्वर
के मेल पर ‘र्’ बन
जायेगा तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा य्, व्, ‘र्’ में लग जायेगी। यथा

अति + अधिक = अत्यधिक

सु + आगत = स्वागत

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

इसमें विच्छेद करते समय य, व तथा ‘र’ के पूर्व आये हलन्त वर्ण में क्रमशः
इ, ई;
उ ऊ

तथा ऋ की मात्रा लगा देंगे तथा य, व, र में जो स्वर है उस स्वर
के प्रारम्भ से पिछला शब्द

लिख देंगे यथा

अत्याचार = अति + आचार

अन्वीक्षण = अनु + ईक्षण

मात्रनुमति = मातृ + अनुमति

अभ्यासार्थ अन्य उदाहरण देखिए-

इ + अ = य

अति + अल्प = अत्यल्प

अधि + अक्ष = अध्यक्ष

विच्छेद

गत्यवरोध = गति + अवरोध

व्यवहार = वि + अवहार

यद्यपि = यदि + अपि

इ + आ = या

इति + आदि = इत्यादि

परि + आवरण = पर्यावरण

विच्छेद

अभ्यागत = अभि + आगत

व्यायाम = वि + आयाम

पर्याप्त = परि + आप्त

इ + उ = यु

अभि + उदय = अभ्युदय

प्रति + उपकार = प्रत्युपकार

विच्छेद

रव्युदय = रवि + उदय

उपर्युक्त = उपरि + उक्त

इ + ऊ = यू

नि + ऊन = न्यून

अधि + ऊढ़ा = अध्यूढ़ा

विच्छेद

अध्येय = अधि + एय

जात्येकता = जाति + एकता

ई + अ = य

नदी + अर्पण = नद्यर्पण

मही + अर्चन = मह्यर्चन

विच्छेद

नद्यन्त = नदी + अन्त

देव्यर्पण = देवी + अर्पण

ई + आ = या

मही + आधार = मह्याधार

विच्छेद

देव्यागमन = देवी + आगमन

नद्यामुख = नदी + आमुख

ई + उ = यु

वाणी + उचित = वाण्युचित

नदी + उत्पन्न = नद्युत्पन्न

विच्छेद

देव्युपासना = देवी + उपासना

वाण्युपयोगी = वाणी + उपयोगी

उ + अ = व

अनु + अय = अन्वय

मधु + अरि = मध्वरि

विच्छेद

तन्वंगी = तनु + अंगी

स्वल्प = सु + अल्प

उ + आ = वा

गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा

भानु + आगमन = भान्वागमन

उ + ई = वी

अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण

विच्छेद

अन्वीक्षा = अनु + ईक्षा

उ + ए = वे

अनु + एषण = अन्वेषण

विच्छेद

अन्वेषी = अनु + एषी

ऊ + आ = वा

वधू + आगमन = वध्वागमन

विच्छेद

भ्वादि = भू + आदि

ऋ + अ = र

मातृ + अनुमति = मात्रनुमति

ऋ + आ = रा

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

ऋ + इ = रि

मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा

ऋ + उ = रु

पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश

नोट: त् + र के मेल से ‘त्र’ बनता है।

अयादि सन्धि

ए, ऐ, ओ, औ के साथ अन्य किसी स्वर के मेल पर ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’; ‘ऐ’ के स्थान

पर ‘आय्’; ओ के स्थान पर ‘अव्’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आव्’ बन जाता है तथा मिलने वाले

स्वर की मात्रा य् तथा ‘व्’ में लग जाती है। जैसे –

ने + अन = नयन, गै + अक = गायक

पो + अन = पवन, पौ + अक = पावक

सन्धि विच्छेद करते समय ध्यान रखना है कि यदि ‘य’ के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर

हो तो उसमें ‘ए’ की मात्रा, आ का स्वर हो तो ‘ऐ’ की मात्रा तथा ‘व’ के पहले वाले वर्ण में

‘अ’ का स्वर हो तो ‘ओ’ की मात्रा तथा ‘आ’ का स्वर हो तो ‘औ’ की मात्रा लगा दें तथा ‘य’

एवं व में जो स्वर है, उससे अगला शब्द बनालें। यथा –

विलय = विले + अ, विनायक = विनै + अक

पवित्र = पो + इत्र, भावुक = भौ + उक

ए + अ = अय

विने + अ = विनय

चे + अन = चयन

ऐ + अ = आय

नै + अक = नायक

विधै + इका= विधायिका

गै + इका = गायिका

ओ + अ = अव भो + अन = भवन

ओ + इ = अवि हो + इष्य = हविष्य

ओ + ए = अवे गो + एषणा = गवेषणा

औ + अ = आव पौ + अन = पावन

औ + इ = आवि नौ + इक = नाविक

औ + उ = आवु भौ + उक = भावुक