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From Karnataka Open Educational Resources
Line 1: Line 1: −
=संधि=
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=कि और की का प्रयोग=
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‘कि’ का प्रयोग<br>
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1. ‘कि’ एक संयोजक (जोड़ने वाला) शब्द है जो मुख्य वाक्य को आश्रित  वाक्य के साथ जोड़ने का कार्य करता है।<br>
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2.  यह पहले वाक्य के अंत में और दूसरे वाक्य के प्रारंभ में लगता है।<br>
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जैसे - शिक्षक ने कहा कि एक कविता सुनाओ।<br>
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3. ‘कि’ का प्रयोग विभाजन के लिए ‘या’ के स्थान पर भी होता है।<br>
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जैसे - तुम डाक-टिकिट संग्रह करते हो कि सिक्के।<br>
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4. ‘कि’ का प्रयोग क्रिया के बाद ही होता है। जैसे ऊपर दिए गए उदाहरणों में क्रिया ‘कहा’ और ‘करते हो’ के  बाद है।<br>
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‘की’ का प्रयोग<br>
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1.  संज्ञा या सर्वनाम शब्द के बाद आने वाले अन्य संज्ञा शब्द के बीच ‘की’ का प्रयोग होता है। यह दोनों शब्दों को जोड़ने और उनके बीच सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य करता है।<br>
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(अ) ताले की चाबी खो गई ।<br>
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(यहाँ 'ताले' और 'चाबी' दोनों संज्ञा शब्द हैं।)<br>
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(ब) उसकी किताब मेज पर रखी है।<br>
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(यहाँ 'उस' सर्वनाम और 'मेज' संज्ञा शब्द है जिसे ‘की’ द्वारा जोड़ा गया है।)<br>
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2. ‘की’ के बाद स्त्रीलिंग शब्द आता है। ऊपर दिए गए उदाहरणों में चाबी और किताब दोनों स्त्रीलिंग शब्द है।<br>
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याद रखने की बात:-<br>
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क्रिया के बाद ‘कि’ लिखा जाता है ‘की’ नहीं ।<br>
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‘की’ के बाद स्त्रीलिंग शब्द का प्रयोग होता है।<br>
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=सन्धि=
 
दो ध्वनियों (वर्णों) के परस्पर मेल को सन्धि कहते हैं।<br>
 
दो ध्वनियों (वर्णों) के परस्पर मेल को सन्धि कहते हैं।<br>
 
अर्थात् जब दो शब्द मिलते हैं तो प्रथम शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण)तथा मिलने वाले शब्द की प्रथम ध्वनि के मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते हैं।<br>
 
अर्थात् जब दो शब्द मिलते हैं तो प्रथम शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण)तथा मिलने वाले शब्द की प्रथम ध्वनि के मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते हैं।<br>
Line 982: Line 1,016:     
सद् + कार = सत्कार<br>
 
सद् + कार = सत्कार<br>
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=विसर्ग सन्धि=
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विसर्ग (ः) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल पर विसर्ग सन्धि होती है। यथा<br>
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निः + अक्षर = निरक्षर<br>
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दुः + आत्मा = दुरात्मा<br>
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निः + पाप = निष्पाप<br>
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1. विसर्ग के साथ च या छ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘श्’ बन जाता है<br>
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निः + चय = निश्चय<br>
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दुः + चरित्र = दुश्चरित्र<br>
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ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र<br>
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निः + छल = निश्छल<br>
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विच्छेद<br>
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तपश्चर्या = तपः + चर्या<br>
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अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना<br>
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हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र<br>
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अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु<br>
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2.विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’बन जाता है।<br>
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दुः + शासन = दुश्शासन<br>
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यशः + शरीर = यशश्शरीर<br>
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निः + शुल्क = निश्शुल्क<br>
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विच्छेद<br>
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निश्श्वास = निः + श्वास<br>
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चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी<br>
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निश्शंक = निः + शंक<br>
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3. विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है<br>
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धनुः + टंकार = धनुष्टंकार<br>
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चतुः + टीका = चतुष्टीका<br>
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चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि<br>
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4. यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा<br>
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विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क,<br>
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ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग<br>
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के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।<br>
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निः + कलंक = निष्कलंक<br>
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दुः + कर = दुष्कर<br>
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आविः + कार = आविष्कार<br>
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चतुः + पथ = चतुष्पथ<br>
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निः + फल = निष्फल<br>
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विच्छेद<br>
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निष्काम = निः + काम<br>
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निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन<br>
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बहिष्कार = बहिः + कार<br>
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निष्कपट = निः + कपट<br>
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ज्योतिष्कण = ज्योतिः + कण<br>
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5. यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में<br>
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अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क,ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा यथा<br>
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अधः + पतन = अध: पतन<br>
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प्रातः + काल = प्रात: काल<br>
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अन्त: + पुर = अन्त: पुर<br>
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वय: क्रम = वय: क्रम<br>
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विच्छेद<br>
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रज: कण = रज: + कण<br>
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तप: पूत = तप: + पूत<br>
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पय: पान = पय: + पान<br>
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अन्त: करण = अन्त: + करण<br>
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अपवाद<br>
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भा: + कर = भास्कर<br>
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नम: + कार = नमस्कार<br>
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पुर: + कार = पुरस्कार<br>
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श्रेय: + कर = श्रेयस्कर<br>
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बृह: + पति = बृहस्पति<br>
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पुर: + कृत = पुरस्कृत<br>
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तिर: + कार = तिरस्कार<br>
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6. विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।<br>
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अन्त: + तल = अन्तस्तल<br>
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नि: + ताप = निस्ताप<br>
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दु: + तर = दुस्तर<br>
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नि: + तारण = निस्तारण<br>
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विच्छेद<br>
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निस्तेज = निः + तेज<br>
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नमस्ते = नम: + ते<br>
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मनस्ताप = मन: + ताप<br>
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बहिस्थल = बहि: + थल<br>
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7. विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।<br>
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नि: + सन्देह = निस्सन्देह<br>
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दु: + साहस = दुस्साहस<br>
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नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ<br>
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दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न<br>
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विच्छेद<br>
 +
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निस्संतान = नि: + संतान<br>
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दुस्साध्य = दु: + साध्य<br>
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मनस्संताप = मन: + संताप<br>
 +
 +
पुनस्स्मरण = पुन: + स्मरण<br>
 +
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8. यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’
 +
की हो जायेगी।<br>
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नि: + रस = नीरस<br>
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नि: + रव = नीरव<br>
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नि: + रोग = नीरोग<br>
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दु: + राज = दूराज<br>
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विच्छेद<br>
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नीरज = नि: + रज<br>
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नीरन्द्र = नि: + रन्द्र<br>
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चक्षूरोग = चक्षु: + रोग<br>
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दूरम्य = दु: + रम्य<br>
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9. विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के
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अतिरिक्त
 +
 +
अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा
 +
अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।<br>
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अत: + एव = अतएव<br>
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मन: + उच्छेद = मनउच्छेद<br>
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पय: + आदि = पयआदि<br>
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 +
तत: + एव = ततएव<br>
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10. विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ,
 +
ग, घ, ड॰,
 +
 +
´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर
 +
 +
विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।<br>
 +
 +
मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा<br>
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सर: + ज = सरोज<br>
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वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध<br>
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यश: + धरा = यशोधरा<br>
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मन: + योग = मनोयोग<br>
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अध: + भाग = अधोभाग<br>
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तप: + बल = तपोबल<br>
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 +
मन: + रंजन = मनोरंजन<br>
 +
 +
विच्छेद<br>
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 +
मनोनुकूल = मन: + अनुकूल<br>
 +
 +
मनोहर = मन: + हर<br>
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 +
तपोभूमि = तप: + भूमि<br>
 +
 +
पुरोहित = पुर: + हित<br>
 +
 +
यशोदा = यश: + दा<br>
 +
 +
अधोवस्त्र = अध: + वस्त्र<br>
 +
 +
अपवाद<br>
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 +
पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन<br>
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पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण<br>
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 +
पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार<br>
 +
 +
पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण<br>
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अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व<br>
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 +
अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय<br>
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अन्त: + यामी = अन्तर्यामी<br>
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 +
 +
=समास=
 +
परिभाषा : 'समास' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है 'छोटा रूप'। अतः जब दो या दो से अधिक शब्द (पद) अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर जो छोटा रूप बनाते है, उसे समास, सामाजिक शब्द या समस्त पद कहते है।<br>
 +
जैस : 'रसोई के लिए घर' शब्दों में से 'के लिए' विभक्त का लोप करने पर नया शब्द बना 'रसोई घर', जो एक सामासिक शब्द है।<br>
 +
किसी समस्त पद या सामासिक शब्द को उसके विभिन्न पदों एवं विभक्ति सहित पृथक् करने की क्रिया को समास का विग्रह कहते है।<br>
 +
जैसे : विद्यालय = विद्या के लिए आलय, माता पिता = माता और पिता<br>
 +
 +
'''समास के प्रकार :'''<br>
 +
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'समास छः प्रकार के होते है-'<br>
 +
1. अव्ययीभाव समास<br>
 +
2. तत्पुरुष समास<br>
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3. द्वन्द्व समास<br>
 +
4. बहुब्रीहि समास<br>
 +
5. द्विगु समास<br>
 +
6. कर्म धारय समास<br>
 +
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==अव्ययीभाव समास==<br>
 +
1. पहला पद प्रधान  होता है।<br>
 +
2. पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है। (वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नही बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं)<br>
 +
3. यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययीभाव समास होता है।<br>
 +
4. संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास होते है।<br>
 +
 +
यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार<br>
 +
यथाक्रम = क्रम में अनुसार<br>
 +
यथावसर = अवसर के अनुसार<br>
 +
यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो<br>
 +
यथाविधि = विधि के अनुसार<br>
 +
यथेच्छा = इच्छा के अनुसार<br>
 +
प्रतिदिन = प्रत्येक दिन, दिन-दिन, हर दिन<br>
 +
प्रत्येक = हर एक, एक-एक, प्रति एक<br>
 +
प्रत्यक्ष = अक्षि के आगे<br>
 +
रातों-रात = रात ही रात में<br>
 +
बीचों-बीच = ठीक बिच में<br>
 +
आमरण = मरने तक, मरणपर्यंत<br>
 +
आसमुद्र = समुद्रपर्यन्त<br>
 +
भरपेट = पेट भरकर<br>
 +
अनुकूल = जैसा कूल है वैसा<br>
 +
यावज्जीवन = जीवन पर्यन्त <br>
 +
निर्विवाद = बिना विवाद के<br>
 +
दरअसल = असल में<br>
 +
बाकायदा = कायदे के अनुसार<br>
 +
साफ-साफ = साफ के बाद साफ, बिलकुल साफ<br>
 +
घर-घर = प्रत्येक घर, हर घर, किसी भी घर को न छोड़कर<br>
 +
हाथों-हाथ = एक हाथ से दूसरे हाथ तक, हाथ ही हाथ में<br>
 +
 +
==तत्पुरुष समास==
 +
1. तत्पुरुष समास में दूसरा पद (पर पद) प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का लिंग, वचन दूसरे पद के अनुसार होता है।<br>
 +
2. इसका विग्रह करने पर कर्ता व सम्बोधन की विभक्तियों(ने,हे,ओ,अरे) के अतिरिक्त किसी भी कारक की विभक्त प्रयुक्त होती है तथा विभक्तियों के अनुसार ही इसके उपभेद होते है। जैसे-<br>
 +
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(क). कर्म तत्पुरुष (को) :<br>
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कृष्णार्पण = कृष्ण को अर्पण<br>
 +
वन-गमन = वन को गमन<br>
 +
प्राप्तोदक = उदक को प्राप्त<br>
 +
नेत्र सुखद = नेत्रों को सुखद<br>
 +
जेब करता = जेब को कतरने वाला<br>
 +
 +
(ख). करण तत्पुरुष (से/के द्वारा) :<br>
 +
ईश्वर-प्रदत्त = ईश्वर से प्रदत्त<br>
 +
तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित<br>
 +
रत्न जड़ित = रत्नों से जड़ित<br>
 +
हस्त-लिखित = हस्त (हाथ) से लिखित<br>
 +
दयार्द्र = दया से आर्द्र<br>
 +
 +
(ग). सम्प्रदान तत्पुरुष (के लिए) :<br>
 +
हवन-सामग्री = हवन के लिए सामग्री<br>
 +
गुरु-दक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा<br>
 +
विद्यालय = विद्या के लिए आलय<br>
 +
बलि पशु = बलि के लिए पशु<br>
 +
 +
(घ). अपादान तत्पुरुष (से पृथक्) :<br>
 +
ऋण-मुक्त = ऋण से मुक्त<br>
 +
मार्ग भ्रष्ट = मार्ग से भ्रष्ट<br>
 +
देश-निकला = देश से निकला<br>
 +
पदच्युत = पद से च्युत<br>
 +
धर्म-विमुख = धर्म से विमुख<br>
 +
(च). सम्बन्ध तत्पुरुष (का, के , की) :<br>
 +
मंत्रि-परिषद् = मंत्रियों की परिषद्<br>
 +
प्रेम-सागर = प्रेम का सागर<br>
 +
राजमाता = राजा की माता<br>
 +
अमचूर = आम का चूर्ण<br>
 +
रामचरित = राम का चरित<br>
 +
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 +
(छ). अधिकरण तत्पुरुष (में, पे, पर) :<br>
 +
वनवास = वन में वास<br>
 +
ध्यान-मग्न = ध्यान में मग्न<br>
 +
घृतान्न = घी में पका अन्न<br>
 +
जीवदया = जीवों पर दया<br>
 +
घुड़सवार = घोड़े पर सवार<br>
 +
कवि पुंगव = कवियों में श्रेष्ठ<br>
 +
 +
==द्वन्द्व समास==
 +
1. द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते है।<br>
 +
2. दोनों पद प्रायः एक दूसरे के विलोम होते है, सदैव नहीं।<br>
 +
3. इसका विग्रह करने पर 'और' अथवा 'या' का प्रयोग होता है।<br>
 +
 +
 +
माता-पिता = माता और पिता<br>
 +
पाप-पुण्य = पाप या पुण्य / पाप और पुण्य<br>
 +
दाल-रोटी = दाल और रोटी<br>
 +
अन्न-जल = अन्न और जल<br>
 +
जलवायु = जल और वायु<br>
 +
भला-बुरा = भला या बुरा<br>
 +
अपना-पराया = अपना या पराया<br>
 +
धर्माधर्म = धर्म या अधर्म<br>
 +
शीतोष्ण = शीत या उष्ण<br>
 +
 +
शीतातप = शीत या आतप<br>
 +
कृष्णार्जुन = कृष्ण और अर्जुन<br>
 +
फल-फूल = फल और फूल<br>
 +
रुपया-पैसा = रुपया और पैसा<br>
 +
नील-लोहित = नीला और लोहित (लाल)<br>
 +
सुरासर = सुर या असुर/सुर और असुर<br>
 +
यशापयश = यश या अपयश<br>
 +
शस्त्रास्त्र = शस्त्र और अस्त्र<br>
 +
 +
==बहुब्रीहि समास==
 +
1. बहुब्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नही होता।<br>
 +
2. इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है।<br>
 +
3. इसका विग्रह करने पर 'वाला, है, जो जिसका, जिसकी, जिसके, वह' आदि आते है।<br>
 +
 +
गजानन = गज का आनन है जिसका वह (गणेश)<br>
 +
चतुर्भुज  = चार भुजाएँ है जिसकी वह (विष्णु)<br>
 +
घनश्याम = घन जैसा श्याम है जो वह (विष्णु)<br>
 +
चन्द्रचूड़ = चन्द्र चूड़ पर है जिसके वह<br>
 +
गिरिधर = गिरि को धारण करने वाला है जो वह<br>
 +
नीललोहित = नीला है लहू जिसका वह<br>
 +
सुग्रीव = सुन्दर है ग्रीवा जिसकी वह<br>
 +
नीलकण्ठ = नीला कण्ठ है जिसका वह<br>
 +
मयूरवाहन = मयूर है वाहन जिसका वह<br>
 +
 +
कमलनयन = कमल के समान नयन है जिसके वह<br>
 +
अष्टाध्यायी = अष्ट अध्यायों की पुस्तक है जो वह<br>
 +
 +
चन्द्रमुखी = चन्द्रमा में समान मुखवाली है जो वह<br>
 +
दिगम्बर = दिशाएँ ही है जिसका अम्बर ऐसा वह<br>
 +
षडानन = षट् (छः) आनन है जिसके वह (कार्तिकेय)<br>
 +
आजानुबाहु = जानुओं (घुटनों) तक बाहुएँ है जिसकी वह<br>
 +
कुशाग्रबुद्धि = कुश के अग्रभाग के समान बुद्धि है जिसकी वह<br>
 +
त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके वह (शिव)<br>
 +
दशानन = दश आनन हैं जिसके वह (रावण)<br>
 +
पीताम्बर = पीत अम्बर हैं जिसके वह (विष्णु)<br>
 +
मुरारि = मुर का अरि है जो वह<br>
 +
आशुतोष = आशु (शीघ्र) प्रसन्न होता है जो वह <br>
 +
वज्रपाणि = वज्र है पाणि में जिसके वह<br>
 +
मधुसूदन = मधु को मारने वाला है जो वह<br>
 +
महादेव = देवताओं में महान् है जो वह<br>
 +
वाल्मीकि = वाल्मीक से उत्पन्न है जो वह<br>
 +
कनकटा = कटे हुए कान है जिसके वह<br>
 +
जितेन्द्रिय = जीत ली है इन्द्रियाँ जिसने वह<br>
 +
मन्द बुद्धि = मन्द है बुद्धि जिसकी वह<br>
 +
 +
==द्विगु समास==
 +
1. द्विगु समास में प्रायः पूर्वपद संख्यावाचक होता है तो कभी-कभी परपद भी संख्यावाचक देखा जा सकता है।<br>
 +
 +
2. द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं, जैसा की बहुब्रीहि समास में देखा है।<br>
 +
 +
3. इसका विग्रह करने पर 'समूह' या 'समाहार' शब्द प्रयुक्त होता है।<br>
 +
 +
दोराहा = दो राहो का समाहार<br>
 +
सम्पादक द्वय = दो सम्पादकों का समूह<br>
 +
पक्षद्वय = दो पक्षो का समूह<br>
 +
त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार<br>
 +
त्रिलोक या त्रिलोकी = तीन लोकों का समाहार<br>
 +
संकलन-त्रय = तीन का समाहार<br>
 +
चौमास/चतुर्मास = चार मासों का समाहार<br>
 +
चतुर्भुज = चार भुजाओं का समाहार (रेखीय आकृति)<br>
 +
पंचामृत = पाँच अमृतों का समाहार<br>
 +
पंचवटी = पाँच वटों का समाहार<br>
 +
सप्ताह = सप्त अहों (सात दिनों) का समाहार<br>
 +
सप्तशती = सप्त शतकों का समाहार<br>
 +
अष्ट-सिद्धि = आठ सिद्धियों का समाहार<br>
 +
 +
नवरात्र = नौ रात्रियों क समाहार<br>
 +
शतक = सौ का समाहार<br>
 +
 +
शताब्दी = शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समाहार<br>
 +
त्रिरत्न = तीन रत्नों का समूह<br>
 +
 +
भुवन-त्रय = तीन भुवनो का समाहार<br>
 +
चतुर्वर्ण = चार वर्णों क समाहार<br>
 +
पंचपात्र = पाँच पात्रों का समाहार<br>
 +
षट्भुज = षट् (छः) भुजाओं का समाहार<br>
 +
सतसई = सात सौ का समाहार<br>
 +
सप्तर्षि = सात ऋषियों का समूह<br>
 +
नवरत्न = नौ रत्नों का समूह<br>
 +
दशक = दश का समाहार<br>
 +
 +
==कर्मधारय समास==
 +
1. कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है तो दूसरा विशेष्य।<br>
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2. इसमें कहीं कहीं उपमेय उपमान का सम्बन्ध होता है तथा विग्रह करने पर 'रूपी' शब्द प्रयुक्त होता है।<br>
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पुरुषोत्तम = पुरुष जो उत्तम<br>
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महापुरुष = महान् है जो पुरुष<br>
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पीताम्बर = पीत है जो अम्बर<br>
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नराधम = अधम है जो नर<br>
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रक्ताम्बर = रक्त के रंग का (लाल) जो अम्बर<br>
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कुपुत्र = कुत्सित जो पुत्र<br>
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चरम-सीमा = चरम है जो सीमा<br>
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कृष्ण-पक्ष = कृष्ण (काला) है जो पक्ष<br>
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शुभागमन = शुभ है जो आगमन<br>
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मृग नयन = मृग के समान नयन<br>
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राजर्षि = जो राजा भी है और ऋषि भी<br>
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मुख-चन्द्र = मुख रूपी चन्द्रमा<br>
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भव-सागर = भव रूपी सागर<br>
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क्रोधाग्नि = क्रोध रूपी अग्नि<br>
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विद्या-धन = विद्यारूपी धन<br>
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सदाशय = सत् है जिसका आशय<br>
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कदाचार = कुत्सित है जो आचार<br>
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सत्परामर्श = सत् है जो परामर्श<br>
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न्यूनार्थक = न्यून है जिसका अर्थ<br>
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नीलकमल = नीला जो कमल<br>
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घन-श्याम = घन जैसा श्याम<br>
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महर्षि = महान् है जो ऋषि<br>
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अधमरा = आधा है जो मरा<br>
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कुमति = कुत्सित जो मति<br>
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दुष्कर्म = दूषित है जो कर्म<br>
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लाल-मिर्च = लाल है जो मिर्च<br>
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मंद-बुद्धि = मंद है जो बुद्धि<br>
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नीलोत्पल = नीला है जो उत्पल<br>
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चन्द्र मुख = चन्द्र जैसा मुख<br>
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नरसिंह = जो नर भी है और सिंह भी<br>
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वचनामृत = वचनरूपी अमृत<br>
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चरण-कमल = चरण रूपी कमल<br>
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चरणारविन्द = चरण रूपी अरविन्द<br>
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सन्मार्ग = सत् है जो मार्ग<br>
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नवयुवक = नव है जो युवक<br>
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बहुमूल्य = बहुत है जिसका मूल्य<br>
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अल्पेच्छ = अल्प है जिसकी इच्छा<br>
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शिष्टाचार = शिष्ट है जो आचार<br>
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