Difference between revisions of "सूर -श्याम"

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सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत |<br>
 
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत |<br>
 
‘सूर' स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत||<br>
 
‘सूर' स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत||<br>
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='''शब्दार्थ'''=
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मैया = माँ            के मारे = के कारण          चबाई = चुगलखोर

Revision as of 08:03, 12 October 2015

सूर -श्याम

१)कवि परिचय
२) साहित्यलहरी
३) शब्दार्थ
४) प्रश्न

कवि परिचय

जन्म :- उत्तर प्रदॆश कॆ रुनकता गाँव मॆ हुआथा 1540
इनकी मृत्यु :- 1642)
सुरदाजी कॊ हिंदी साहित्यकाश कॆ सुर्य मानॆ जातॆ है।
ईन्हॆ भक्तिकाल की सुगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा कॆ प्रवर्तक माना जाता है।
इनकी रजनाएँ :- ‘सुरसागर’, ‘ सुरसारावली’ एवं

साहित्यलहरी

इनकि काव्यॊं मॆ वात्सल्य, त्रृंगार, तथा भक्ति का त्रिवॆणी संगम हुआ है?

मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो |
मोसों कहत मोल को लीनो, तोहि जसुमति कब जायो ||


कहा कहौं इहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात |
पुनि पुनि कहत कौन है माता, को है तुमरो तात ||


गोरे नंद जसोदा गोरी,तुम कत स्याम सरीर |
चुटकी दै दै हँसत ग्वाल, सब सिखै देत बलबीर ||


तू मोहिं को मारन सीखी दाउहि कबहुँ न खीझै |
मोहन को मुख् रिस समेत लखि, जसुमति सुनि सुनि रीझै ||

सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत |
‘सूर' स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत||

शब्दार्थ

मैया = माँ के मारे = के कारण चबाई = चुगलखोर