Difference between revisions of "बसंत कीसच्चाई (एकांकी)"
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Revision as of 11:16, 9 May 2016
परिकल्पना नक्षा
पृष्ठभूमि/संधर्भ
सत्य मानव-जीवन की अनमोल विभूति है। जो अपने प्रति, अपनी आत्मा के प्रति, अपने कर्तव्यों के प्रति, परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति मन-वचन-क्रम से सच्चा रहता है वह इसी जीवन, इसी देह और इसी संसार में स्वर्गीय आनन्द प्राप्त करता है। उसके लिए सुख-शाँति और साधन संतोष की कमी नहीं रहती।
सत्य मानव जीवन की सबसे शुभ और कल्याणकारी नीति है। इसका अवलम्बन लेकर चलने वाले जीवन में कभी असफल नहीं होते। यह बात मानी जा सकती है कि सत्य का आश्रय लेकर चलने पर प्रारम्भ में कुछ कठिनाई हो सकती है। किन्तु आगे चलकर उसका आशातीत लाभ होता है। सत्य, पुण्य की खेती है। जिस प्रकार अन्न की कृषि करने में प्रारम्भ में कुछ कठिनाई उठानी पड़ती हैं और उसकी फसल के लिए थोड़ी प्रतीक्षा भी करनी पड़ती है। किन्तु बाद में जब वह कृषि फलीभूत होती है तो घर, धन-धान्य से भर देती है। उसी प्रकार सत्य की कृषि भी प्रारम्भ में थोड़ा त्याग, बलिदान और धैर्य लेती है। किन्तु जब वह फलती है तो लोक से लेकर परलोक तक मानव-जीवन को पुष्पों से भर कर कृतार्थ कर देती है।
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मुख्य उद्देष्य
लेखक से परिचय
विष्णु प्रभाकर (२१ जून १९१२- ११ अप्रैल २००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक थे जिन्होने अनेकों लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक तथा यात्रा संस्मरण लिखे। उनकी कृतियों में देशप्रेम, राष्ट्रवाद, तथा सामाजिक विकास मुख्य भाव हैं।विष्णु प्रभाकर का जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था। उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपये मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।
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अतिरिक्त संसाधन
सारांश
परिकल्पना
शिक्षक के नोट
गतिविधि
- विधान्/प्रक्रिया
- समय
- सामग्री / संसाधन
- कार्यविधि
- चर्चा सवाल