Test भीम और राक्षस
साहित्य प्रकार
हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ और इसने अपनी शुरुआत कविता के माध्यम से जो कि ज्यादातर लोकभाषा के साथ प्रयोग कर विकसित की गई। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं।
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ग्रंथ का अर्थ पुस्तक होता है। यह मुख्य रूप से धार्मिक और ऐतिहासिक पुस्तकों के लिए प्रयोग किया जाता है। ग्रंथ वह किताब या पुस्तक जिसके पन्ने या पृष्ठ प्राचीन समय में गाँठ बाँधकर रखे जाते थे। ग्रंथ धार्मिक या साहित्यिक दृष्टि से कोई महत्त्वपूर्ण बड़ी पुस्तक है। ग्रंथ तथा अभिलेख लिखने के लिए जिस लिपि का दक्षिण भारत में उपयोग होता था, उसी को आगे चलकर ‘ग्रन्थ लिपि’ का नाम दिया गया।
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लेखक का परिचय
विष्णु प्रभाकर (२१ जून १९१२- ११ अप्रैल २००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक थे जिन्होने अनेकों लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक तथा यात्रा संस्मरण लिखे। उनकी कृतियों में देशप्रेम, राष्ट्रवाद, तथा सामाजिक विकास मुख्य भाव हैं।विष्णु प्रभाकर का जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था। उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपये मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।
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ऋषि वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं। अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक तो पहुंचती थी। वे उन घटनाओं पर अपना परामर्श भी देते थे। जब-जब अंतर्द्वंद्व और संकट की स्थिति आती थी, माता सत्यवती उनसे विचार-विमर्श के लिए कभी आश्रम पहुंचती, तो कभी हस्तिनापुर के राजभवन में आमंत्रित करती थी। प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य, चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। उन्होने ही अट्ठारह पुराणों की भी रचना की, ऐसा माना जाता है। वेदव्यास यह व्यास मुनि तथा पाराशर इत्यादि नामों से भी जाने जाते है। वह पराशर मुनि के पुत्र थे, अत: व्यास 'पाराशर' नाम से भि जाने जाते है।
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पृष्ठभूमि
महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं
हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं।
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पाठ का परिचय
बकासुर एक दानव था जो की महाभारत युद्ध का एक चरित्र था। बकासुर दैत्य का वध पांडू पुत्र भीम ने किया था। महापुरूष का कहना है कि एकचक्र के शहर में एक छोटा सा गांव, उत्तर प्रदेश के जिले प्रतापगढ़ शहर के दक्षिण में स्थित द्वैतवन में रहता था वर्तमान में चक्रनगरी को चकवड़ के नाम से जाना जाता है। बकासुर मुख्यतः तीन स्थान में रहता था जो द्वैतवन के अंतर्गत आता था। पहला चक्रनगरी, दूसरा बकागढ़, बकासुर इस क्षेत्र में रहता था इस लिए इस स्थान का नाम बकागढ़ पड़ा था किन्तु वर्तमान में यह स्थान बकाजलालपुर के नाम से जाना जाता है जो की इलाहाबाद जिले के अंतर्गत आता है। तीसरा और अंतिम स्थान जंहा राक्षस बकासुर रहता था वह था डीहनगर, जिला प्रतापगढ़ के दक्षिण और इलाहाबाद जिला ले उत्तर में बकुलाही नदी के तट पर बसा है। इस स्थान को वर्तमान में ऊचडीह धाम के नाम से जाना जाता है। लोकमान्यता है की इसी जगह राक्षस बकासुर का वध भीम ने अज्ञातवास के दौरान किया था।
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पाठ से उत्पन्न हुए विचार
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पाठ का विकास
गतिविधिया
- विधान्/प्रक्रिया - छात्रो को महाभारत मे से कोई एक कहानी को क्लास मे प्रस्तुत करने का कार्य दिया जाये। समय - 5-10 मिनट प्रति छत्र। कार्यविधि - छत्र कागज़ को देखते हुए उसमे से पढकर कहानी सुना सकता है। चर्चा सवाल
- छात्रो द्वारा इस एकंकी को याद कर मंच पे नाटक के रूप मे प्रस्तुत किया जा सकता है।
- निम्नलिखित मुहावरो को उचित वाक्यो मे उपयोग करे।
पानी पिलाना - सबक सिखाना
हिम्मत न हारना - अटल रेहना
भग्य फूटना - बुरा होना
आग बबूला होना - क्रोधित होना
पाठ पढाना - सबक सिखाना
आग मे झोकना - संकट मे डालना