सूर -श्याम (पद)
परिकल्पना नक्षा
पृष्ठभूमि/संधर्भ
मुख्य उद्देष्य
लेखक का परीचय
सूरदास का नाम कृष्ण भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि है। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं। हिंदी कविता कामिनी के इस कमनीय कांत ने हिंदी भाषा को समृद्ध करने में जो योगदान दिया है, वह अद्वितीय है। सूरदास हिन्दी साहित्य में भक्ति काल के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान कवि हैं।
सूरदास का जन्म १४७८ ईस्वी में रुनकता नामक गांव में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। कुछ विद्वानों का मत है कि सूर का जन्म सीही [1] नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में ये आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। सूरदास के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में [2] मतभेद है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में १५८० ईस्वी में हुई।
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अतिरिक्त संसाधन
सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं:
(१) सूरसागर - जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे। किंतु अब सात-आठ हजार पद ही मिलते हैं।
(२) सूरसारावली
(३) साहित्य-लहरी - जिसमें उनके कूट पद संकलित हैं।
(४) नल-दमयन्ती
(५) ब्याहलो
उपरोक्त में अन्तिम दो अप्राप्य हैं।
नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के १६ ग्रन्थों का उल्लेख है। इनमें सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी, आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें प्रारम्भ के तीन ग्रंथ ही महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं, साहित्य लहरी की प्राप्त प्रति में बहुत प्रक्षिप्तांश जुड़े हुए हैं।
सूरसागर का मुख्य वर्ण्य विषय श्री कृष्ण की लीलाओं का गान रहा है। सूरसारावली में कवि ने कृष्ण विषयक जिन कथात्मक और सेवा परक पदो का गान किया उन्ही के सार रूप मैं उन्होने सारावली की रचना की। सहित्यलहरी मैं सूर के दृष्टिकूट पद संकलित हैं।
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सारांश
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परिकल्पना
शिक्षक के नोट
गतिविधि
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- कार्यविधि
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भाषा विविधता
शब्दकॊश
व्याकरण / सजावट / पिंगल
मूल्यांकन
I. मौखिक प्रश्न:
1. बालकृष्ण किससे शिकायत करता है ?
उत्तर :- बालकृष्ण माता यशोदा से शिकायत करता है ।
2. बलराम के अनुसार किसे मोल लिया गया है ?
उत्तर :- बलराम के अनुसार कृष्ण को मोल लिया गया है ।
3. बालकृष्ण का रंग कैसा था ?
उत्तर :- बालकृष्ण का रंग स्याम (काला) था ।
4. बालकृष्ण अपनी माता से क्या-क्या शिकायतें करता है ?
उत्तर :- बालकृष्ण अपनी माता से शिकायत करता है कि – “भाई मुझे बहुत चिढ़ाता है। वह
कहता है कि तुम्हें यशोदा माँ ने जन्म नहीं दिया है बल्कि मोल लिया है। तुम्हारे माता-पिता
कौन है? नंद और यशोदा तो गोरे हैं, लेकिन तुम्हारा शरीर क्यों काला है? माँ, तुमने केवल
मुझे ही मारना सीखा है और भाई पर कभी गुस्सा नहीं करती।”
5. यशोदा कृष्ण को किस प्रकार सांत्वना देती है ?
उत्तर :- कृष्ण को सांत्वना देने के लिए यशोदा इस प्रकार कहती है – “हे कृष्ण ! सुनो ।
बलराम जन्म से ही चुगलखोर है। मैं गोधन की कसम खाकर कहती हूँ, मैं ही तेरी माता हूँ
और तुम मेरे पुत्र हो।”
II. लिखित प्रश्न:
अ. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :
1. सूर-श्याम पद के रचियता कौन हैं?
उत्तर :- सूर-श्याम पद के रचियता कवि सूरदास जी हैं।
2. कृष्ण की शिकायत किसके प्रति है?
उत्तर :- कृष्ण की शिकायत बड़े भाई बलराम के प्रति है।
3. यशोदा और नंद का रंग कैसा था?
उत्तर :- यशोदा और नंद का रंग गोरा था।
4. चुटकी दे-देकर हँसनेवाले कौन थे?
उत्तर :- चुटकी दे-देकर हँसनेवाले ग्वाल-बाल थे।
5. यशोदा किसकी कसम खाती है?
उत्तर :- यशोदा गोधन(गाय) की कसम खाती है।
आ. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :
1. कृष्ण बलराम के साथ खेलने क्यों नहीं जाना चाहता?
उत्तर :- बालकृष्ण अपनी माता से शिकायत करता है कि – दाऊ भैया मुझे बहुत चिढ़ाता है। वह
कहता है कि तुम्हें यशोदा माँ ने जन्म नहीं दिया है बल्कि मोल लिया है। इसी गुस्से के
कारण उसके साथ मैं खेलने नहीं जाना चाहता।
2. बलराम कृष्ण के माता-पिता के बारे में क्या कहता है?
उत्तर :- बलराम कृष्ण से बार-बार पूछता है कि तुम्हारे माता-पिता कौन हैं ? वह कहता है कि
नंद और यशोदा तो गोरे हैं लेकिन तुम क्यों काले हो? इस प्रकार बलराम कृष्ण से कहता है।
3. कृष्ण अपनी माता यशोदा के प्रति क्यों नाराज़ है?
उत्तर :- कृष्ण अपनी माता यशोदा से इसलिए नाराज़ है कि वह केवल कृष्ण को ही मारती है
और बड़े भाई बलराम को गुस्सा तक नहीं करती।
4. यशोदा कृष्ण के क्रोध को कैसे शांत करती है?
उत्तर :- यशोदा कृष्ण के क्रोध को शांत करने के लिए इस प्रकार कहती है – “हे कृष्ण ! सुनो ।
बलराम जन्म से ही चुगलखोर है। मैं गोधन की कसम खाकर कहती हूँ, मैं ही तेरी माता हूँ
और तुम मेरे पुत्र हो।”
इ. चार-छ: वाक्यों में उत्तर लिखिए:
1. सूर-श्याम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए ।
भावार्थ :-
प्रस्तुत पद में बालकृष्ण अपनी माता से शिकायत करता है कि – “दाऊ भैया मुझे बहुत
चिढ़ाता है। वह कहता है कि तुम्हें यशोदा माँ ने जन्म नहीं दिया है बल्कि मोल लिया है।
इसी गुस्से के कारण उसके साथ मैं खेलने नहीं जाना चाहता। वह मुझे बार-बार पूछता है
कि तुम्हारे माता-पिता कौन है? नंद और यशोदा तो गोरे हैं, लेकिन तुम्हारा शरीर क्यों
काला है? यह सुनकर सब ग्वाल मित्र चुतकी बजा-बजाकर हँसते हैं। ऐस दाऊ भैया ने उन्हे
सिखाया है। माँ, तुमने केवल मुझे ही मारना सीखा है और भाई पर कभी गुस्सा नहीं
करती।” कृष्ण के क्रोध और उसकी बातों को सुनकर यशोदा खुश हो जाती है। कृष्ण के
समाधान के लिए कहती है कि “हे कृष्ण ! सुनो । बलराम जन्म से ही चुगलखोर है। मैं
गोधन की कसम खाकर कहती हूँ, मैं ही तेरी माता हूँ और तुम मेरे पुत्र हो।”