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| =परिकल्पना नक्षा= | | =परिकल्पना नक्षा= |
| =पृष्ठभूमि/संधर्भ= | | =पृष्ठभूमि/संधर्भ= |
− | सत्य मानव-जीवन की अनमोल विभूति है। जो अपने प्रति, अपनी आत्मा के प्रति, अपने कर्तव्यों के प्रति, परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति मन-वचन-क्रम से सच्चा रहता है वह इसी जीवन, इसी देह और इसी संसार में स्वर्गीय आनन्द प्राप्त करता है। उसके लिए सुख-शाँति और साधन संतोष की कमी नहीं रहती।
| + | सत्य मानव-जीवन की अनमोल विभूति है। जो अपने प्रति, अपनी आत्मा के प्रति, अपने कर्तव्यों के प्रति, परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति मन-वचन-क्रम से सच्चा रहता है वह इसी जीवन, इसी देह और इसी संसार में स्वर्गीय आनन्द प्राप्त करता है। उसके लिए सुख-शाँति और साधन संतोष की कमी नहीं रहती। |
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| सत्य मानव जीवन की सबसे शुभ और कल्याणकारी नीति है। इसका अवलम्बन लेकर चलने वाले जीवन में कभी असफल नहीं होते। यह बात मानी जा सकती है कि सत्य का आश्रय लेकर चलने पर प्रारम्भ में कुछ कठिनाई हो सकती है। किन्तु आगे चलकर उसका आशातीत लाभ होता है। सत्य, पुण्य की खेती है। जिस प्रकार अन्न की कृषि करने में प्रारम्भ में कुछ कठिनाई उठानी पड़ती हैं और उसकी फसल के लिए थोड़ी प्रतीक्षा भी करनी पड़ती है। किन्तु बाद में जब वह कृषि फलीभूत होती है तो घर, धन-धान्य से भर देती है। उसी प्रकार सत्य की कृषि भी प्रारम्भ में थोड़ा त्याग, बलिदान और धैर्य लेती है। किन्तु जब वह फलती है तो लोक से लेकर परलोक तक मानव-जीवन को पुष्पों से भर कर कृतार्थ कर देती है। | | सत्य मानव जीवन की सबसे शुभ और कल्याणकारी नीति है। इसका अवलम्बन लेकर चलने वाले जीवन में कभी असफल नहीं होते। यह बात मानी जा सकती है कि सत्य का आश्रय लेकर चलने पर प्रारम्भ में कुछ कठिनाई हो सकती है। किन्तु आगे चलकर उसका आशातीत लाभ होता है। सत्य, पुण्य की खेती है। जिस प्रकार अन्न की कृषि करने में प्रारम्भ में कुछ कठिनाई उठानी पड़ती हैं और उसकी फसल के लिए थोड़ी प्रतीक्षा भी करनी पड़ती है। किन्तु बाद में जब वह कृषि फलीभूत होती है तो घर, धन-धान्य से भर देती है। उसी प्रकार सत्य की कृषि भी प्रारम्भ में थोड़ा त्याग, बलिदान और धैर्य लेती है। किन्तु जब वह फलती है तो लोक से लेकर परलोक तक मानव-जीवन को पुष्पों से भर कर कृतार्थ कर देती है। |