Difference between revisions of "मेरि अभिलाषहै"

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पुरस्कार्:बालसाहित्य् पुरस्कार् ,सरस्वती साधना  सम्मान<br>                                                         
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रचनाएँ: कविता संग् :फूल् और् शूल्, ख़्ंड् काव्य् :कौंच् वध्, सत्य् की जी
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बाल काव्य  कॄतियाँ ,वीर तुम बडे चलो,हम सब सुमन एक उपवन के , सोने की कुल्हाडी , कातो और गाओ ,सूरज सा चमकूँ मैं ,बाल् गीतायन |<br>
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२.भावार्थ् लिखाना | <br>
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चंदा -सा चमकूँ मैं<br>
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झलमल -झलमल् उज्वल् <br>
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फूलों-सा महकँ मैं<br>
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कोयल्-सा कुह्कुँ मैं<br>
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मेरी अभिलाषा है |<br>
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नभ से निर्मलता लूँ <br>
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शशी से शीतलता लूँ<br>
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धरती से सहनशक्ति<br>
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पर्वत् से दॄढ्ता लूँ<br>
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मेरी अभिलाषा है |<br>
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मेघों - सा मिट् जाऊँ<br>
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सागर्-सा लहराऊँ<br>
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सेवा के पथ् पर मैं<br>
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सुमनों- सा बिछ् जाऊँ<br>
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मेरीअभिलाषा है |<br>

Latest revision as of 11:10, 23 September 2015

उद्देश्य

'सामान्य उद्देश्य'
कविता के द्वारा हिंदी साहित्य् के प्रति रूचि उत्पन्न् कराना |
'विशिष्ट उद्देश्य'
छात्रों में पारस्परिकता, सेवा,सहनशीलता, आदि मानवीय् मूल्यों को जगाना |

कविता का आशय

सेवा, परोपकार्, त्याग , सहनशीलता, दॄढ्ता आदि जीवन् मूल्यों को अपनाने का स्ंदेश् |

कवि परिचय

द्वारिका प्रसाद् माहेश्वरी
जन्म्: १९१६
स्थान्: उत्तर् प्र् देश् के आग्र के रोहता ग्र् म मे हुआ|
पुरस्कार्:बालसाहित्य् पुरस्कार् ,सरस्वती साधना सम्मान
रचनाएँ: कविता संग् :फूल् और् शूल्, ख़्ंड् काव्य् :कौंच् वध्, सत्य् की जी बाल काव्य कॄतियाँ ,वीर तुम बडे चलो,हम सब सुमन एक उपवन के , सोने की कुल्हाडी , कातो और गाओ ,सूरज सा चमकूँ मैं ,बाल् गीतायन |

पद्य् के प्र् मुख़ आधार् बिंदु

१. प्र् कृति के विभिन्न आयामों को पहचानना |
२.उनमें निहित गुणों को अपनाना |
३.प्राकॄतिक गुणों की प्रश्ंसा |
४.भाषाई कौशल् :सुनना , बोलना |
१. कविता का सस्वर् वाचन |
२.दॄश्य व्य माद्यमों का प्र् योग
भाषाई कौशल : पढना, लिख़ना
भाषिक विचार् : १. नये शब्दों का अर्थ |
५पूरक साहित्य :१ अन्य बाल कविताएँ |
२.द्वारिका प्र् साद्जी की जीवनी |
६. सहायक् सामाग्रियाँ: १.द्वारिका प्र् साद् माहेश्वरीजी का भावचित्र |
२.पद्य से संब्ंधित दॄश्यावली
३.प्र् श्न् तालिका |
७. उपयुक्त अन्य् गतिविधियाँ: १कविता का गायन् |
२.भावार्थ् लिखाना |

मेरी अभिलाषा है |

सूरज सा दमकूँ मैं
चंदा -सा चमकूँ मैं
झलमल -झलमल् उज्वल्
तारों - सा दमकूँ मैं
मेरी अभिलाषा है |

फूलों-सा महकँ मैं
विहगों-सा चहकूँ मैं
गुंजित कर वन -उपवन्
कोयल्-सा कुह्कुँ मैं
मेरी अभिलाषा है |

नभ से निर्मलता लूँ
शशी से शीतलता लूँ
धरती से सहनशक्ति
पर्वत् से दॄढ्ता लूँ
मेरी अभिलाषा है |

मेघों - सा मिट् जाऊँ
सागर्-सा लहराऊँ
सेवा के पथ् पर मैं
सुमनों- सा बिछ् जाऊँ
मेरीअभिलाषा है |