Hindi language and learning
1. समाज में हमारी भूमिका क्या है? शिक्षक, आचार्य, गुरु, अध्यापक इसका अर्थ है- विद्या/ज्ञान देने वाला, अध्यापक, पूज्य या आचार्य, पढ़ाने वाला।
2. अध्यापक के रूप में हमारी विशेष भूमिका अथवा किस अध्यापक के रूप में हमारी पहचान होती है? भाषा अध्यापक
3. भाषा क्या है? यह पूरी तरह से सामाजिक है। बिना समाज के इसकी कल्पना करना कठिन है। अनुभवों को भाषा के द्वारा बता सकते हैं। विचार करने, चिंतन और तर्क करने में भाषा उपयोगी होती है। लोगों के विचारों, भावनाओं, अनुभवों और कल्पनाओं को भाषा के द्वारा समझा जा सकता है। यह उपर्युक्त सब मौखिक और लिखित रूप में व्यक्त करने में भाषा उपयोगी होती है। ४. भाषा मनुष्य शुरुआत में कैसे सीखता है? सुनकर, समझकर और बोलकर । अत: भाषा शिक्षण में इस क्रम को ही प्राथमिकता प्राथमिक कक्षाओं में देते हैं। यह भी देखा जाता है कि मानक भाषा के मौखिक उपयोग पर बल दिया जाए और इसके लिए बच्चों को कई गतिविधियों से प्रोत्साहित करते हैं। हिन्दी भाषा को सुनने, समझने और बोलने के अवसर कम ही प्राप्त होते हैं । यह चुनौती भाषा शिक्षकों को हमेशा ही याद रखनी चाहिए।
5. भाषा के बोलने में उच्चारण का महत्त्व – शुरुआत में ही शुद्ध भाषा बोलने पर ध्यान देना क्योंकि हिन्दी भाषा जैसी बोली जाती है वैसी ही लिखी जाती है। इसलिए मौखिक भाषा के महत्त्व को हम भाषा शिक्षकों को हमेशा याद रखना है।
6. भाषा के अन्य कौशल्य- पहचानना, पढ़ना और लिखना। इन कौशल्यों के संबंध में व्याकरण और शब्दकोष ज़रूरी है पर प्रश्न है - इनको भाषा सिखाने की शुरुआत में ही सिखाया जाए या फिर इन्हें छोड़ दिया जाए? इस संबंध में भाषा सीखने के महत्त्व पर ध्यान दें तो ये बातें याद रखना ज़रूरी हैं- १. असंख्य नए वाक्य बनाना और समझना २. अशुद्ध वाक्य को पहचानने की क्षमता अथवा योग्यता को बढ़ाना ३. वाक्य में एक से अधिक अर्थ निकलते हों तो उन्हें समझना। पर यह भी याद रखना ज़रूरी है कि हर भाषा को सिखाते या सीखते समय व्याकरण आवश्यक है। पर इसके नियमों को पढ़ाने व रटवाने से बचना चाहिए।अत: इसका स्वाभाविक उपयोग किया जाए। बड़ी कक्षाओं में भी यह ध्यान रखा जाए कि व्यावहारिक व्याकरण को महत्त्व दिया जाए। 7. प्रश्न है कि पहले अक्षर सिखाएं जाएं या शब्द या वाक्य? अपने बचपन के दिन यदि हम याद करें तो हम पाएंगे कि हमने भी मौखिक भाषा पहले सीखी। भाषा में किसी वस्तु या चित्र को देखकर शब्द अथवा उसका नाम सीखा, फिर छोटे-छोटे वाक्य बोलना और बाद में कहानी अथवा किसी घटना को अपने शब्दों में कहना। जब लिखना सीखा तो शब्द दिखाते समय अक्षर को आकृति या चित्र के रूप में पहचानते हैं फिर उच्चारण सीखते हैं । फिर दो अक्षर , तीन अक्षर को जोड़ना और ऐसे ही मात्रा वाले शब्द पहचानना , पढ़ना और लिखना सीखते हैं जैसे कि हम सब जानते हैं। क्या यह लिखना आसानी से आ गया? यदि इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो हम पाते हैं कि पहले गुफाओं पर चित्र खिंचे होते थे जिनमें एक संदेश छुपा होता था। भाषा को ईश्वर की देन भी समझा गया। ब्रह्मा को "लेखन कला का जन्मदाता" माना गया। इस कारण ही भारत की प्राचीन लिखावट "ब्राह्मी" मानी गई। हर भाषा में लिखने के तरीके अलग होने के बावजूद हर भाषा की उत्पत्ति /शुरुआत केवल उर्दू को छोड़कर ब्राह्मी से मानी गई। 8. भारत में हिन्दी का स्थान- जब हम भारत की भाषाओं की बात कर रहे हैं तो हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारे देश में हर भाषा को दर्जा दिया गया है। किसी भी भाषा को "राष्ट्र भाषा" का दर्जा हासिल नहीं है। जो बहुत ही अच्छी बात है जिससे भारत में धर्मनिरपेक्षता का भाव दिखता है। पर १९५० में हिन्दी को राष्ट्रीय शासकीय भाषा का दर्जा दिया गया जिससे यह स्पष्ट था कि केन्द्र और राज्य सरकार के बीच सम्पर्क की भाषा हिन्दी होगी और खास बात यह रही कि इस संदर्भ में अंग्रेजी का कहीं स्थान नहीं था। १९६५ तक अंग्रेजी को हिन्दी के साथ सहभाषा का दर्जा दिया गया जो अभी तक बरकरार है।
9. भाषा शिक्षण की गतिविधियाँ- भाषा विकास करने के लिए ज़रूरी है कि भाषा शिक्षण पर ध्यान दिया जाए । अत: निम्नलिखित मुद्दे हम शिक्षकों को याद रखने होंगे- १. भाषा शिक्षक बच्चों के अनुभव के आधार को बढ़ाए। २. बच्चों की समझ को आधार बनाकर उसे बढ़ाने में भाषा शिक्षक मदद दे। ३. उपर्युक्त तथ्यों को करने में शिक्षक ध्यान रखे कि बच्चों को आगे बढ़ने की गति में स्वतंत्रता मिले। ४. मातृभाषा के साथ-साथ मानक भाषा को बच्चा बिना दवाब के सीखे और इसके साथ ही अपनी मातृभाषा को छोटा न समझे। ५. पढ़ना-लिखना सिखाने के लिए पर्याप्त सुव्यवस्थित अभ्यास सार्थक और रुचिपूर्ण ढ़ंग से कराए जाएं। ६. पाठशाला के वातावरण की भूमिका भाषा शिक्षण में- १. भाषा के उपयोग के लिए विभिन्न अनुभव देना २. बालक खुलकर भाग ले सके, बोल सके, चर्चा कर सके और अपनी बात कहने के लिए प्रेरित हो। ३. बालक की भाषाई क्षमताओं अथवा योग्यताओं को चुनौती मिले। ४. बच्चे को भाषा शिक्षण की गतिविधियों में आनन्द आए और सीखना संभव हो। ५. भाषा में पढ़ना-लिखना अपने आप होता जाए चाहे वह अकेला सीखे या छोटे समूहों में क्योंकि शिक्षकों के पास कई छात्र और छात्राओं की संख्या होती है तो शायद व्यक्तिगत ध्यान देना कठिन है अत: आत्मशिक्षण ज़रूरी है ताकि बच्चा स्वावलम्बी बने और शिक्षक को कम से कम सहायता देनी पड़े। ६. भाषा को समृद्ध करने के लिए व्याकरण को अलग से न सिखाया जाए और अरोचक पठन और लेखन करने से बचा जाए वरना बच्चे की पढ़ने और सीखने की भूख मर जाएगी। ७. पुस्तकें अथवा पाठ, कविता और एकांकी को शिक्षक स्वयं न पढ़ें बल्कि बच्चों से पढ़वाएँ और उनसे ही विषय-वस्तु का अर्थ समझाने के लिए कहें । उनकी सहायता के लिए उन्हें कुछ संकेत शब्द या प्रश्न दिए जाएं। ८. इसी तरह से प्रश्नों के उत्तर , निबन्ध , पत्र आदि का लेखन कराया जाए, शिक्षक बच्चों को यह सब श्रुत लेखन के रूप में न दें। ९. याद रखें कि भाषा का महत्त्व समझें और यह तभी समृद्ध होगी जब इसका इस्तेमाल किया जाएगा। यह हमारे जीवन और संस्कृति का हिस्सा है। १०. लिखना भाषा की समृद्धि के लिए आवश्यक नहीं है पर हर भाषा का अपना एक ढाँचा , शब्दावली और वाक्यसंरचना के नियम होते हैं । १०. भारत के राज्यों में तीन भाषाएँ सिखाई जाती हैं- प्रथम, द्वितीय और तृतीय भाषा के रूप में। हर रूप में भाषा के उद्देश्य अलग होते हैं। तो अब प्रश्न है – तृतीय भाषा के रूप में हिन्दी के उद्देश्य क्या हैं? उपलब्ध समय प्रति सप्ताह कितना है? चुनौतियाँ क्या हैं? हिन्दी के शिक्षण की गतिविधियाँ क्या हों? पाठ्य सामग्री किस तरह पूरी की जाए और कैसे? न जाने ऐसे कितने सारे प्रश्न हैं?