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सरयूर्मि = सरयू + ऊर्मि<br>
 
सरयूर्मि = सरयू + ऊर्मि<br>
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==गुण सन्धि==
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अ या आ के साथ इ या ई के मेल से ‘ए’ ( Ú ), अ या आ के साथ उ या ऊ के मेल से ‘ओ’ ( ो ) तथा अ या आ के साथ ऋ के मेल से ‘अर’बनता है यथा <br>
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अ + इ = ए<br>
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सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र<br>
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स्व + इच्छा = स्वेच्छा<br>
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विच्छेद<br>
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नेति = न + इति<br>
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भारतेन्दु = भारत + इन्दु<br>
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अ + ई = ए<br>
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नर + ईश = नरेश<br>
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सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण<br>
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विच्छेद<br>
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गणेश = गण + ईश<br>
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प्रेक्षा = प्र + ईक्षा<br>
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आ + इ = ए<br>
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महा + इन्द्र = महेन्द्र<br>
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यथा +इच्छा = यथेच्छा<br>
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विच्छेद<br>
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राजेन्द्र = राजा + इन्द्र<br>
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यथेष्ट = यथा + इष्ट<br>
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आ + ई = ए<br>
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राका + ईश = राकेश<br>
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द्वारका +ईश = द्वारकेश<br>
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विच्छेद<br>
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रमेश = रमा + ईश<br>
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मिथिलेश = मिथिला + ईश<br>
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अ + उ = ओ ओ<br>
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पर+उपकार = परोपकार<br>
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सूर्य + उदय = सूर्योदय<br>
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विच्छेद<br>
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प्रोज्ज्वल = प्र + उज्ज्वल<br>
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सोदाहरण = स + उदाहरण<br>
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अन्त्योदय = अन्त्य + उदय<br>
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अ + ऊ = ओ<br>
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ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि<br>
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नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा<br>
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विच्छेद<br>
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समुद्रोर्मि = समुद्र + ऊर्मि<br>
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जलोर्जा = जल + ऊर्जा<br>
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आ + उ = ओ ओ<br>
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महा + उदय = महोदय<br>
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यथा+उचित = यथोचित<br>
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विच्छेद<br>
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शारदोपासक = शारदा + उपासक<br>
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महोत्सव = महा + उत्सव<br>
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आ + ऊ = ओ ओ<br>
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गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि<br>
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महा + ऊर्जा = महोर्जा<br>
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विच्छेद<br>
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यमुनोर्मि = यमुना + ऊर्मि<br>
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महोरू = महा + ऊरू<br>
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अ + ऋ = अर्<br>
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देव + ऋषि = देवर्षि<br>
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शीत + ऋतु = शीतर्तु<br>
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विच्छेद<br>
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सप्तर्षि = सप्त + ऋषि<br>
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उत्तमर्ण = उत्तम + ऋण<br>
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आ + ऋ = अर्<br>
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महा + ऋषि = महर्षि<br>
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विच्छेद<br>
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राजर्षि = राजा + ऋषि<br>
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( पपप) वृद्धि सन्धि: अ या आ के साथ ‘ए’ या ‘ऐ’ के मेल से ‘ऐ’ ( ै ) तथा अ या<br>
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आ के साथ ‘ओ’ या ‘औ’ के मेल से ‘औ’ ( ौ ) बनता है। यथा:<br>
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अ + ए = ऐ<br>
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मत + एकता = मतैकता<br>
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धन + एषणा = धनैषणा<br>
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विच्छेद<br>
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एकैक = एक + एक<br>
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विश्वैकता = विश्व + एकता<br>
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अ + ऐ = ऐ<br>
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ज्ञान+ऐश्वर्य = ज्ञानैश्वर्य<br>
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स्व+ऐच्छिक = स्वैच्छिक<br>
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विच्छेद<br>
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मतैक्य = मत + ऐक्य<br>
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देवैश्वर्य = देव + ऐश्वर्य<br>
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आ + ए = ऐ<br>
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सदा + एव = सदैव<br>
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वसुधा + एव = वसुधैव<br>
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विच्छेद<br>
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महैषणा = महा+एषणा<br>
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तथैव = तथा + एव<br>
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आ + ऐ = ऐ<br>
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महा+ऐश्वर्य = महैश्वर्य<br>
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विच्छेद<br>
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गंगैश्वर्य = गंगा + ऐश्वर्य<br>
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अ + ओ = औ<br>
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दूध + ओदन = दूधौदन<br>
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जल + ओघ = जलौघ<br>
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विच्छेद<br>
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परमौज = परम + ओज<br>
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घृतौदन = घृत + ओदन<br>
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अ + औ = औ<br>
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वन+औषध = वनौषध<br>
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तप+औदार्य = तपौदार्य<br>
 +
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विच्छेद<br>
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भावौचित्य = भाव + औचित्य<br>
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भावौदार्य = भाव + औदार्य<br>
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आ + ओ = औ<br>
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महा + ओज = महौज<br>
 +
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गंगा + ओघ = गंगौघ<br>
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विच्छेद<br>
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महौजस्वी = महा + ओजस्वी<br>
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आ + औ = औ<br>
 +
 +
महा+औषध = महौषध<br>
 +
 +
यथा+औचित्य = यथौचित्य<br>
 +
 +
विच्छेद<br>
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महौत्सुक्य = महा + औत्सुक्य<br>
 +
 +
महौदार्य = महा + औदार्य<br>
 +
==यण सन्धि==
 +
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इ या ई के साथ इनके अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर इ या ई के स्थान पर ‘य्’ उ या ऊ के साथ इनके अतिरिक्त अन्य स्वर के मेल पर उ या ऊ के स्थान पर ‘व्’ तथा‘ऋ’
 +
के साथ अन्य किसी स्वर<br>
 +
के मेल पर ‘र्’ बन<br>
 +
जायेगा तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा य्, व्, ‘र्’ में लग जायेगी। यथा<br>
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अति + अधिक = अत्यधिक<br>
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सु + आगत = स्वागत<br>
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पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा<br>
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इसमें विच्छेद करते समय य, व तथा ‘र’ के पूर्व आये हलन्त वर्ण में क्रमशः<br>
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इ, ई;<br>
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उ ऊ<br>
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तथा ऋ की मात्रा लगा देंगे तथा य, व, र में जो स्वर है उस स्वर<br>
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के प्रारम्भ से पिछला शब्द<br>
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लिख देंगे यथा <br>
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अत्याचार = अति + आचार<br>
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अन्वीक्षण = अनु + ईक्षण<br>
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मात्रनुमति = मातृ + अनुमति<br>
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अभ्यासार्थ अन्य उदाहरण देखिए-<br>
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इ + अ = य<br>
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अति + अल्प = अत्यल्प<br>
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अधि + अक्ष = अध्यक्ष<br>
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विच्छेद<br>
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गत्यवरोध = गति + अवरोध<br>
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व्यवहार = वि + अवहार<br>
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यद्यपि = यदि + अपि<br>
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इ + आ = या<br>
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इति + आदि = इत्यादि<br>
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परि + आवरण = पर्यावरण<br>
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विच्छेद<br>
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अभ्यागत = अभि + आगत<br>
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व्यायाम = वि + आयाम<br>
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पर्याप्त = परि + आप्त<br>
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इ + उ = यु<br>
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अभि + उदय = अभ्युदय<br>
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प्रति + उपकार = प्रत्युपकार<br>
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विच्छेद<br>
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रव्युदय = रवि + उदय<br>
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उपर्युक्त = उपरि + उक्त<br>
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इ + ऊ = यू<br>
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नि + ऊन = न्यून<br>
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अधि + ऊढ़ा = अध्यूढ़ा<br>
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विच्छेद<br>
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अध्येय = अधि + एय<br>
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जात्येकता = जाति + एकता<br>
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ई + अ = य<br>
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नदी + अर्पण = नद्यर्पण<br>
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मही + अर्चन = मह्यर्चन<br>
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विच्छेद<br>
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नद्यन्त = नदी + अन्त<br>
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देव्यर्पण = देवी + अर्पण<br>
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ई + आ = या<br>
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 +
मही + आधार = मह्याधार<br>
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विच्छेद<br>
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देव्यागमन = देवी + आगमन<br>
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 +
नद्यामुख = नदी + आमुख<br>
 +
 +
ई + उ = यु<br>
 +
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वाणी + उचित = वाण्युचित<br>
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नदी + उत्पन्न = नद्युत्पन्न<br>
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विच्छेद<br>
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 +
देव्युपासना = देवी + उपासना<br>
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 +
वाण्युपयोगी = वाणी + उपयोगी<br>
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उ + अ = व<br>
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 +
अनु + अय = अन्वय<br>
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 +
मधु + अरि = मध्वरि<br>
 +
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विच्छेद<br>
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तन्वंगी = तनु + अंगी<br>
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स्वल्प = सु + अल्प<br>
 +
 +
उ + आ = वा<br>
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गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा<br>
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भानु + आगमन = भान्वागमन<br>
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उ + ई = वी<br>
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अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण<br>
 +
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विच्छेद<br>
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अन्वीक्षा = अनु + ईक्षा<br>
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उ + ए = वे<br>
 +
 +
अनु + एषण = अन्वेषण<br>
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 +
विच्छेद<br>
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 +
अन्वेषी = अनु + एषी<br>
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ऊ + आ = वा<br>
 +
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वधू + आगमन = वध्वागमन<br>
 +
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विच्छेद<br>
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भ्वादि = भू + आदि<br>
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ऋ + अ = र<br>
 +
 +
मातृ + अनुमति = मात्रनुमति<br>
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ऋ + आ = रा<br>
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पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा<br>
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ऋ + इ = रि<br>
 +
 +
मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा<br>
 +
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ऋ + उ = रु<br>
 +
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पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश<br>
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नोट: त् + र के मेल से ‘त्र’ बनता है।<br>
 +
==अयादि सन्धि==
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ए, ऐ, ओ, औ के साथ अन्य किसी स्वर के मेल पर ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’; ‘ऐ’ के स्थान <br>
 +
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पर ‘आय्’; ओ के स्थान पर ‘अव्’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आव्’ बन जाता है तथा मिलने वाले<br>
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 +
स्वर की मात्रा य् तथा ‘व्’ में लग जाती है। जैसे –<br>
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ने + अन = नयन, गै + अक = गायक<br>
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पो + अन = पवन, पौ + अक = पावक<br>
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सन्धि विच्छेद करते समय ध्यान रखना है कि यदि ‘य’ के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर<br>
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हो तो उसमें ‘ए’ की मात्रा, आ का स्वर हो तो ‘ऐ’ की मात्रा तथा ‘व’ के पहले वाले वर्ण में<br>
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 +
‘अ’ का स्वर हो तो ‘ओ’ की मात्रा तथा ‘आ’ का स्वर हो तो ‘औ’ की मात्रा लगा दें तथा ‘य’<br>
 +
 +
एवं व में जो स्वर है, उससे अगला शब्द बनालें। यथा –<br>
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विलय = विले + अ, विनायक = विनै + अक<br>
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पवित्र = पो + इत्र, भावुक = भौ + उक<br>
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ए + अ = अय<br>
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विने + अ = विनय<br>
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चे + अन = चयन<br>
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ऐ + अ = आय<br>
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 +
नै + अक = नायक<br>
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विधै + इका= विधायिका<br>
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गै + इका = गायिका<br>
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ओ + अ = अव भो + अन = भवन<br>
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ओ + इ = अवि हो + इष्य = हविष्य<br>
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 +
ओ + ए = अवे गो + एषणा = गवेषणा<br>
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औ + अ = आव पौ + अन = पावन<br>
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 +
औ + इ = आवि नौ + इक = नाविक<br>
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 +
औ + उ = आवु भौ + उक = भावुक<br>
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